ग़ज़लें - फूलचंद गुप्ता
सुखी कहाँ हो?है जर्द चेहरा,सुख का कोई निशां नहीं है
कहें वो बिरवा हरा है लेकिन कहीं भी पत्ता हरा नहीं है
फुग़ां कि दुनिया बहुत बड़ी है मगर सभा में उठी ये चर्चा
कि आबोदाना बहुत है लेकिन हयाते हक़ में हवा नहीं है
खदेड़ लाए वो बकरियों को जलाके सहरा सभी शहर में
शज़र यहां पर नहीं है कोई , अगरचे है तो मिला नहीं है
तुम्हारी आँखों में दर्द इतना कि जैसे सदमा बड़ा लगा है
विलख के ऐसे छुपा गए हो कि जैसे कुछ भी हुआ नहीं है
धुआं नहीं है , नहीं तीरगी , तो इसका मतलब यही नहीं है
कि इनकी मंशा ख़तम हुई है , यहां पे इनकी रजा नहीं है !
जो तोड़ पिंजरे उड़ें परिंदे , हजार जंगल पनाह देंगे
मिलेंगी खुशियाँ वहीं अगरचे किसी ने कुछ भी कहा नहीं है
...फूलचंद गुप्ता
बी/7, आनंद बंगलोज, गायत्री मंदिर रोड, महावीर नगर,
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