बाल कविता – समय बडा बलवान - नीरज त्यागी,
समय बडा बलवान
माँ ने आँगन में जो बोए थे सपनो के पौधे कभी,
वक्त की कंकरीट के आगे वो पौधे ही उजड गए
पिता ने जो उम्मीद का दामन थामा था कभी,
वो उम्मीदे घर छोड़,नया असियां बनाने निकल गई।
दोनों ने मिलकर जो सपनो की पौध लगाई थी कभी,
वक्त के माली ने उनके बढ़ते ही उनकी जगह बदल दी।
जब लगा कि बस उस वृक्ष पर फल लगने ही वाले है,
वो डाली माँ-बाप को छोड़ दूसरे आँगन में झुक गयी
वक्त के हाथों में सभी लोगो की सारी उम्मीदों के धागे है।
इच्छाएँ करे कोई कुछ भी सब उन धागों के आगे नाचे है।
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