शोध पत्र - महादेवी का साहित्य और नारी - ममता श्रीवास्तवा

शोध पत्र - महादेवी का साहित्य और नारी -  ममता श्रीवास्तवा 


 


 


        अलि मैं कण-कण को जान चली


        सबका क्रंदन पहचान चली।


        आंसू के सब रंग जान चली,


        दुख को कर सुख आख्यान चली।


महादेवी का साहित्य संसार एक अथाह समुद्र की भांति है जिसकी सीमा को नापना या उसे शब्दों में बांधना असंभव है। महादेवी ने गद्य और पद्य दोनों ही विधा में साहित्य की साधना की।


      महादेवी के गीत जितने सुंदर और सजीव हैं उनका गद्य संसार भी उसी प्रकार विभिन्न रंगों से भरा है।


      उनकी रचनाओं की प्रेरणास्रोत बनी हमारे समाज की नारी, शायद यही वजह है कि महादेवी के गद्य साहित्य में अनेक नारी पात्र का वर्णन मिलता है1


      अतीत के चलचित्र - अतीत के चलचित्र के सभी पात्र महादेवी के प्रत्यक्ष संपर्क में आए हैं, वे वास्तविक जीवन की वे यादें हैं जो महादेवी की कलम से चित्र के रूप में अंकित हैं।


      अतीत की अपनी यादों के मोती को पिरोते हुए महादेवी ने जो माला तैयार की है उसके ही कुछ मोतियों रूपी नारी के जीवन रेखा की चर्चा करने का मैंने प्रयास किया है।


      भाभी


      भाभी एक मारवाडी विधवा बह थी। भारतीय समाज में विधवा का जीवन बहुत कठिन होता था। उसे दो जून भोजन भी नहीं मिलता था। जब भाभी १९ वर्ष की थी तभी उसके जीवन का सुनहरा स्वप्न खत्म हो गया था क्योंकि इतनी सी उम्र में ही वो विधवा हो गई थी। भाभी पूरे परिवार ही नहीं बल्कि समाज भी उपेक्षित थी और वह काला लंहगा काली ओढ़नी जैसी वेशभूषा में रहती थी, पर उसकी ननद के लिए का ना५ क लिएबड़े सुन्दर रंगीन कपड़े बनते थे। भाभी को भी रंगीन कपड़े बहुत भाते थे। जब ८ वर्षीय महादेवी ने उन्हें लहरिए की साड़ी पहना दी तथा उनकी माँ ने उसके हाथों में मेंहदी लगा दी तब घर में अचानक एक बहुत बड़ा तूफान आ गयाघर के लोगों ने जिस क्रूरता का प्रदर्शन किया इसका बयान नहीं किया जा सकता। महादेवी ने लिखा है कि आज भी जब रंगीन कपड़े देखती हूँ तो उन भाभी का क्या हुआ होगा सोचकर मेरी ममता क्रंदन करने लगती है।


    बिंदा


    बिंदा एक चौदह वर्ष की विवश लड़की की कहानी है जो विमाता के द्वारा सताई गई मासूम बालिका थी। उसके बारे में लिखते हुए महादेवी कहती हैं - "उसका कभी झाडू देना, कभी आग जलाना, कभी आंगन के नल से कलसी में पानी लाना, कभी नई अम्मा को दूध का कटोरा देने जाना, मुझे बाजीगर के तमाशे जैसा लगता था, क्योंकि मेरे लिए तो वे सब कार्य असंभव से थे।" बिंदा की त्रासदी ने शायद बिंदा को उम्र से पहले बड़ा बना दिया था। इस सबके बाद भी उसका विमाता की मार झेलना, उनके कोप का भाजन होना बहुत ही पीडादायी था। एक दिन अचानक जब ये पता चला कि वह भी अपनी आकाश वासिनी अम्मा के पास चली गई है।


    एक लड़की का एक नारी के द्वारा सताए जाना कितना अजीब और आम बात है। क्या यह परम्परा कभी बदलेगी?


    सबिया


    सबिया का वास्तविक नाम सावित्री था। पुकारतेपुकारते वो कब सावित्री से सबिया हो गई पता ही नहीं चला।


    हमारे भारतीय समाज की यह भी एक बहुत बड़ी विडम्बना है नाम बदलने की प्रथा। एक लड़की की पहचान फलां की बेटी, पत्नी, या माँ के नाम से होती है। उसके अपने नाम का तो मानो कोई वजूद ही नहीं होता और सबसे अच्छी बात यह कि इस परिवर्तन को हम औरतें बड़ी खुशी-खुशी स्वीकार भी कर लेती हैं।


    सबिया के माध्यम से महादेवी ने एक नारी कीसहनशीलता और सूझबूझ का परिचय दिया है -


    सबिया का पति उसे तथा उसके बच्चों को छोड कर परदेश चला जाता है, वह बेचारी लोगों के घर काम करके अपना जीवनयापन करती है। और एक दिन जब मैक (सबिया का पति) वापस आता है तो साथ में नई बधू को भी लाता है।


    सबिया अपने पति के साथ-साथ उसकी नई पत्नी को भी घर में जगह देती है, किंतु एक दिन फिर अचानक मेला देखने का कहकर मैकू और उसकी पई वधू जो घर से जाते तो फिर कभी नहीं लौटते।


    सबिया का वर्णन करते हुए महादेवी कहती हैं- 'सच तो यह है कि मैं सबिया को उस पौराणिक नारीत्व के निकट पाती हैं, जिसने जीवन की सीमा रेखा किसी अज्ञात लोक तक द जीवन के लिए मत्य से लडना पडा, तो वह न मरने के लिए जीवन से संघर्ष करती है।'


    बिट्टो 


    बिट्टो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो विधवा होने के पश्चात् पुनर्विवाह करके समाज की एक पुरानी मान्यता को नया रूप तो दिखाती है। किन्तु हमारा पुरुष प्रधान समाज किसी नारी के प्रति इतना उदार नहीं है। बिठूटो का विवाह हुआ भी, तो एक वृद्ध से जिसकी वह तीसरी पत्नी बनी।


    किन्तु शायद खुशियाँ बिट्टो के जीवन का रास्ता भूल गई थीं। दूसरा पति भी एक वृद्ध था, जो अस्वस्थ रहने लगा और जब उसकी स्थिति मरणासन्न हो गई तो उसके पुत्र अपनी विमाता को घर से बेघर करने में जुड़ गए। इस कहानी के माध्यम से महादेवी ने हमारे समाज की नारी की दयनीय स्थिति का चित्रण किया है।


    इस कहानी को पढ़कर यह पता चलता है कि नारी हमारे समाज में सदैव एक बेल की भाँति किसी पुरुष के सहारे जीवन गुजारने को मजबूर रही है, चाहे वास्तविकता में पुरुष को ही सहारे की जरूरत हो परन्तु हमारा समाज नारी को ही अबला समझता है।


      दो फूल


    _दो फूल एक स्मृति चित्र है जिसमें महादेवी ने एक वृद्ध की पोती जो मरणासन्न है, का चित्रण किया है। वह लड़की एक छोटे से अबोध शिशु की माँ होने के साथ-साथ विधवा है।


      वह एक विकृत मानसिकता के पुरुष के वासना की शिकार है, जिसके दुख को हमारा समाज समझने की बजाए तिरस्कृत करता है। समाज के क्रूर व्यंग्य और करुणा की महादेवी ने सटीक चित्रण किया है।


    __१८ वर्ष की स्त्री और उसका बालक यही दो फूल हैं जिसे हमारा पुरुष प्रधान समाज खिलने से पहले ही तोड़ देता है, जो वक्त से पहले ही मुरझा जाते हैं और अन्त में जब उन माँ-बेटे की सुरक्षा करने को कोई तैयार नहीं होता तब स्वयं महादेवी उस बालिका तथा उसके अबोध २२ दिन के शिशु को अपने घर ले आती हैं।


      आज समय बड़ी तेजी से बदला है। हमारे समाज में बड़ी तेजी से परिवर्तन आया है। लोगों की सोच में बदलाव आया है। लेकिन आज भी जब मैं अखबार पढती हँ तो ऐसी तमाम घटनाएँ देखती हूँ और हृदय द्रवित हो उठता है। आज का मानव चाँद पर तो पहुँच गया, किन्तु नारी के प्रति उसका दृष्टिकोण आज भी वही है।


    आज भी मासूम बच्चियों का यौन शोषण समाज के लिए एक चुनौती बनी हुई है। जब तक ऐसी दुर्बल मानसिकता वाले पुरुषों को उनके घिनौने अपराध के लिए कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, नारी को समाज में सम्मानित स्थान नहीं मिलेगा। ऐसे फूल खिलते रहेंगे, वक्त से पहले मुरझाने के लिए।


    सबला


    'सबला' के माध्यम से महादेवी ने हमारे समाज में होने वाले प्रेम विवाह के दुष्परिणाम को चित्रित किया है। यह एक नारी जीवन की बहुत बड़ी समस्या है। जब पुरुष घर से विद्रोह कर विवाह करता है और परिवार उस स्त्री को स्वीकार नहीं करता, तब यह समस्या सामने आती ही है। उसका पति डेढ़ साल से बीमार है और उसके ससुराल वाले उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।


    कैसी विडम्बना है कि एक माता-पिता जो अपने बच्चों की खुशी तो चाहते हैं, लेकिन जब वही खुशी बच्चे स्वयं पसन्द कर लेते हैं तो माँ-बाप के अहं को मानो ठेस लग जाती है और उन्हें अपनी जिन्दगी से बेदखल कर देते हैं।


    उस स्त्री के साथ भी ऐसा ही हुआ और जब किसी ने साथ नहीं दिया तो महादेवी ने छोटा-मोटा काम देकर उसकी सहायता की किन्तु एक दिन उसका पति इस दुनिया से चला गया।


    ___ आखिर में उसने सिलाई-बुनाई का काम शुरू कर अपनी जीविका का साधन खोज लिया था। वह सबला थी और महादेवी से जानना चाहती थी कि वे स्त्रियों को जीविका का साधन सिखाने के लिए जो आश्रम खोलना चाहती थी वह कब खुलेगा


    लछमा


    लछमा एक पहाड़ी युवती की कहानी है जिसके माध्यम से महादेवी ने हमारे समाज के इस विकृत मानसिकता की ओर ध्यान खींचने का प्रयास किया है जहाँ एक लड़की का विवाह होना आवश्यक माना जाता है, चाहे उसका वर मानसिक रूप से विकत क्यों न हो1


    क्या एक नारी के जीवन का अर्थ सिर्फ किसी की पत्नी बन कर ही है। भले ही उसका होने वाला जीवन साथी उसका सहारा बनने के बजाए जीवन भर उस पर बोझ बना रहे।


    किन्तु नारी इतनी सहनशील होती है कि वह सारे दुख सह लेती है किन्तु कभी किसी से अपनी व्यथा नहीं कहती क्योंकि उसे लगता है कि उसके घर की मर्यादा इसी में है


    कब तक हम औरतें यूँ ही सारे कष्ट सहकर समाज के सामने मुस्कुराती रहेंगी और 'नारी तेरी यही कहानी' को चरितार्थ करती रहेंगी


    महादेवी ने लछमा के बारे में लिखा है कि लछमा का एक छोटा-सा घास-फूसा का घर है। बाप की आँखें खराब हैं और माँ का हाथ टूट गया है। लछमा के अलावा उसके घर में साले घर में कोई स्वस्थ नहीं है। वह घास और पत्तियाँ लाती है। दूध दही जमाती है, मट्ठा बिलोती है। इस तरह घर चलाती है।


    पर उसका जीवन कठोर व्यंग्य से भरा था। उसका विवाह जिस व्यक्ति से हुआ था, उसका मानसिक विकास एक बालक के समान ही रह गया था। लछमा अनेक अत्याचार सहकर भी अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहती थी। तब उसे बहुत पीटा गया था और किसी तरह वह घिसटकर दूसरे गाँव तक पहुंची थी। उसने अपने साथ हुए अत्याचार की बात किसी को नहीं सुनाई थी क्योंकि इससे उसके घर की मर्यादा चली जाती1


    वह हृदय से अत्यन्त पवित्र तथा दूसरों का मंगल चाहने वाली युवती थी। शायद इसी वजह से महादेवी का सानिध्य पाकर वो स्वस्थ हो गई।


    लछमा के जीवित होने का समाचार पाकर उसके ससुराल वाले उसके अबोध पति को लेकर उसे बुलाने आ गए थे, पर वह नहीं गई। उसने इतना ही कहा कि उसका पति ही उसके पास रहने आ जाए तो वह उसके लिए सबकुछ करेगी। महादेवी ने पुरुष और स्त्री की मानसिकता का वास्तविक चित्रण करते हुए कहा है -


    ___'एक पुरुष के प्रति अन्याय की कल्पना से ही सारा पुरुष-समाज उस स्त्री से प्रतिशोध लेने को उतारु हो जाता है और एक स्त्री के साथ क्रूरतम अन्याय का प्रमाण पाकर भी सब स्त्रियाँ उसके अकारण दंड को अधिक भारी बनाए बिना नहीं रहतीं।'


    अगर कोई स्त्री स्वतंत्र रूप से अपना काम कर पाती है तो इसे भी अच्छा नहीं समझा जाता है।


    स्मृति की रेखाएँ


    'स्मृति की रेखाएँ' में महादेवी ने संवेदना के गहरे रंग भरे हैं। इसमें उन लोगों की कथा व्यथा है जो समाज के निम्नतम वर्ग में अभावों के बीच सांस लेते हैं।


    महादेवी जी की कृतियों को पढ़कर, उनके साहित्य में हुए नारी जीवन के वर्णन के विषय में जब मैं सोचती हूँ, तो उनके प्रति मेरा सिर श्रद्धा से झुक जाता है। यह सोचकर कि उन्होंने किस तरह स्वयं एक नारी होकर यथासंभव 'असहाय' नारियों की सहायता की


    महादेवी के साहित्य हमें प्रेरणा देते हैं कि यदि हम चाहें तो हम भी बहुत कुछ कर सकते हैं अपने समाज के लिए।


    'स्मृति की रेखाएँ' में महादेवी ने भक्तिन, मन्नू की माई, बिबिया, गुगिया जैसी तमाम स्त्रियों का वर्णन किया है।


    मन्नू की माई


    एक ऐसी बालिका की कहानी है, जिसने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया किन्तु अभाव के चलते उसका बाबा उसे बेचने के उद्देश्य से एक दिन मेले में छोड़ कर कहीं  चला गया। आस-पास के लोगों ने वहीं घाट पर ही एक ब्राह्मण परिवार में उसे आश्रय दिलाई, जहाँ निष्काम सेवा करते-करते वह तेरह वर्षीय बालिका कब पुत्रवधु और मन्नू की माई बन गई। यह एक संवेदनहीन समाज की क्रूरता की ही कहानी है जिसे महादेवी ने शब्दों के माध्यम से चित्रित किया है।


    बिबिया


    बिबिया एक अछूत बालिका की कहानी हैं, जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है इस निर्दयी समाज से और आखिर में एक दिन कहीं अतध्यान हो जाती है।


    गुंगिया


    गुगिया महादेवी की रचना का एक ऐसा पात्र है जो बोल नहीं सकती परन्तु महादेवी उसे अपने परदेशी पति को चिट्ठी लिखवाया करती और उस निर्मोही कर इंतजार करतेकरते एक दिन उसकी आंखें पथरा गई।


    भक्तिन


    महादेवी की रचनाओं में भक्तिन मुझे सबसे ज्यादा प्रिय लगी या यूँ कहें कि मैंने भी भक्तिन को महादेवी की ही भाँति भली प्रकार जाना-समझा क्योंकि भक्तिन से मेरा परिचय ४-५ साल पहले बारहवीं की किताब में हुआ जिसे मैं छात्रों को पढ़ा रही थी।


    महादेवी की रचनाएँ मुझे बचपन से अति प्रिय थीं और जब मैंने अपने छात्रों को भक्तिन की कहानी सुनाई तो ऐसा लगा मानों हमारे समाज में हर तरफ भक्तिन तथा उसकी बेटी जैसी स्त्रियाँ मौजूद हैं।


    भक्तिन पाँच वर्ष में ही पुत्रवधू बन गई थी और नौ वर्ष में उसकी विमाता ने उसका गौना कर दिया। उसके पिता उसे बहुत चाहते थे किन्तु एक दिन उनका भी देहांत हो गया जिसका पता भक्तिन को बहत दिनों बाद चला क्योंकि विमाता नहीं चाहती थी, कि वो अंतिम समय में अपने पिता से मिले और उनकी संपत्ति की मालकिन बने। बाल विवाह के दुख से बोझिल २९ वर्ष की उम्र में ही विधवा भी हो गई। उसके दुखों का अन्त अभी भी नहीं हुआ क्योंकि किशोर होते-होते उसकी बेटी भी विधवा हो गई। जायदाद के लालच में परिवार वाले उसकी बेटी की दूसरी शादी कराना चाहते थे।


    महादेवी जी ने अपनी कहानी भक्तिन में स्त्रियों की दशा का वर्णन बड़े मार्मिक ढंग से किया है, भक्तिन की बेटी को अकेला देखकर जब एक रिश्तेदारी का युवक उसकी कोठरी घुस जाता है और उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयास करता है, तब उस लड़की का स्वाभिमान जाग उठता है और उसने अपनी अंगुलियों की छाप उसके चेहरे पर बना दी, उसकी इतनी पिटाई की कि वह कांप उठा।


    ___ इस घटना को पढ़ते ही मेरे नेत्रों के सामने माँ दुर्गा का वह विकराल रूप स्मरण हो आया जब उन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए राक्षसों का संहार किया था।


    किंतु अगली पंक्ति पढ़ते ही मन स्त्री होने पर विकल हो उठा।


    कैसा है यह समाज। भक्ति की बेटी के लाख दुहाई देने के बाद भी उसी व्यक्ति के साथ बांध दिया गया जो भक्षक था। वही आज सबकी सहमति पाकर रक्षक बन बैठा। जिन पंचों ने ऐसा फैसला सुनाया क्या उनके घर में बहू-बेटी नहीं थीं।


    __ एक पुरुष के प्रति अन्याय की कल्पना से ही पुरुषसमाज उस स्त्री से प्रतिशोध लेने पर उतारू हो जाता है और एक स्त्री के साथ क्रूरतम अन्याय का प्रमाण पाकर भी सब स्त्रियाँ मिलकर उसका साथ नहीं देतीं1


    महादेवी जी ने अपनी रचनाओं में संवेदना के गहरे रंग भरे हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का प्रयत्न किया है और वर्तमान नारी को सचेत किया है, कि आज तुम सक्षम हो अपने अस्तित्व को पहचानो।


    महादेवी बचपन से ही मेरी प्रेरणास्त्रोत रहीं और उनकी रचनाओं ने भी प्रेरित किया है कि मैं भी एक लेखिका होने के नाते समाज के ऐसे वर्ग को अपनी कहानी का पात्र चुनें और उनके हक की लड़ाई को आगे बढ़ाऊं।


                                              संदर्भ ग्रंथ सूची


          महादेवी का रचना संसार - डॉ. राजेन्द्र मिश्र


        अतीत के चलचित्र - महादेवी वर्मा


        स्मृति की रेखाएँ - महोदवी वर्मा।


                                                                                                                                                                      शोध-छात्रा


                                                                                                                                  महाराजा विनायक ग्लोबल विश्वविद्यालय,


                                                                                                                                          आमेर, जयपुर-302028, राजस्थान


                                                                                                                                                          मो.नं. : 8419020319