लघुकथा - पेट - डॉ. पूरनसिंह

लघुकथा  -  पेट - डॉ. पूरनसिंह


 


अमोधा मजदूरी करता है। पिछले एक सप्ताह से घर पर बैठा है काम नहीं लगा। वह मिश्राईन जिज्जी को जानता है। वे बहुत दयालु हैं। उनके नाती का परसों जन्मदिन था। खूब अच्छे-अच्छे पकवान बने थे। मिश्राईन थोड़ा तो खाना बनाती नहीं है। उसी में से बच गया था काफी खाना। अमोधा उनके घर के सामने से निकल रहा था सो आवाज दी थी, 'अमोधा।'


  'जी जिज्जी।'


    'कुछ खाना रखा है। परसों नाती का जन्मदिन था। उसी का बचा हुआ। ले जाओगे। बच्चे खा लेंगे। अच्छा खाना है।' लगभग वेकार हो चुके खाने को अच्छा खाना बताते हुए मिश्राईन ने कहा था।


    ____'जिज्जी अभी काम देखने जा रहे हैं लौटकर आकर ले लेंगे' दोनों हाथ जोड़कर बोला था अमोधा


    ___अभी ले, तो ले ले, नहीं तो मैं कुत्ते को फेंक दूंगी।' न जाने क्यों गुस्सा आ गया था मिश्राईन को?


    ___ अमोधा एक पल को रुका। सिर से अंगोछा बांधे थाउतारा और दोनों हाथ फैलाकर बोला, 'तो ले आओ जिज्जी।'


  __ मिश्राईन दो दिन पहले अपने नाती के जन्मदिन का बचा हुआ खाना एक पौलीथिन में भरकर ले आई थी। अमोधा ने पोलीथिन अपने अंगोछे में बड़ी अच्छी तरह से रख ली थी।


    ___ मैं देख रहा था। मेरे तन बदन में आग लग गई। मिश्राईन पर तो गुस्सा आया ही कि इस बुसे (खराब हुए) हुए खाने को एक गरीब को दे रही है और ये.......ये अमोधा इसमें जरा भी स्वाभिमान नहीं है जिस खाने को कुत्ते को दिया जाना है उसे ही ले लियासम्मान मर गया है क्या?


    सम्मान मर गया है क्या? जब मिश्राईन अंदर चली गई तो मैंने अमोधा से पछा, 'क्यों रे जो खाना कत्ते को दिया जाना था उसे तझे दे दिया और तने उसे ले भी लियासाले. त कत्ते से भी गया गजरा है...........मान- अपमान नाम की चीज होती है कि नहीं........स्वाभिमान मर गया है तुम्हारा, सालो।'


    उसने मुझे देखाकतई गुस्सा नहीं हुआ। बहुत विनम्रता से बोला, 'साहव मान, सम्मान, स्वाभिमान सब जानते हैं हम ..... पिछले सात दिन से काम नहीं लगा। घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है। दो दिन से चारों बच्चे भूखे हैं। ये...ये खाना ले जाएंगे तो वे पेट भरकर खा लेंगे।' फिर अपना पेट खोलकर दिखाते हुए बोला था, 'पेट...पेट, समझते हैं आप....।' मैं बड़ी देर तक देखता रहा था उसे फिर उसे अपनी दोनों बाहों में भर लिया था। हम दोनों न जाने क्यों बड़ी देर तक बिलखते रहे थे1


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