कविता - यह सभ्य लोगों का मोहल्ला था....... - कौशल किशोर 

यह सभ्य लोगों का मोहल्ला था.......


 


वह परदेस से लौटा था


ग्यारह महीने बाद


बड़ी तैयार से लौटा था


जैसे परदेस से कमा कर आने वाले आते हैं


वैसे ही वह आया था


मसलन, बेटे के लिए


उसके मनपसन्द खिलौने


बीवी के लिए कपड़े-गहने


उन सब के लिए


तरह-तरह के सामान, असबाब..


 


बेटा खुशी में उछल रहा था


वह दोस्तों को बताता


कि मेरे पापा आए हैं


वे लाए हैं मेरे लिए खूबसूरत खिलौने


वह दोस्तों को दिखाता


कहता कि जिद कर उनसे खरीदवाउंगा


अपने लिए नई साईकिल


क्रिकेट के बल्ले, गेंद और दस्ताने....



बीवी भी खुश थी कि जुदाई खत्म हुई


गृहस्थी की गाड़ी अकेले खींचते-खींचते


वह बहुत थक चुकी थी


वह आ रहा है और उसके साथ से


जिन्दगी को मिलेगा सुकून


यह सब सोचती


शीशे के सामने खड़े अपने को निहारती


जुट जाती अपने को तैयार करने में


ताकि वह दिखे बिल्कुल नए लुक में



वह जब से आया है


उसके घर का दरवाजा बन्द ही रहता है


वह तभी खुलता जब उन्हें जाना होता हाट-बाजार


या कोई आता मिलने तो खुलता थोड़ी देर के लिए


फिर बन्द तो बन्द......


अन्दर से आती रहती उनकी बतकही,


हंसी-ठिठोली, फिल्मों के गाने, टी वी की आवाजें


 


एक हफ्ता बीत गया था ऐसे ही


जुदाई के बाद


मिलन के प्रेम की आंच ठण्डी पड़ चुकी थी


बस बची थी राख और धुआ


अब भी आती थी आवाज, पर बदली बदली


वहां बरतन के गिरने, पटकने और फेकने का


अन्दर से उठता शोर


गाली-गल्लौज, चीखने-चिल्लाने,


गरजने-तड़पने, रोने-सिसकने की आवाज


लगता कोई हिंस्र पशु दबोचे है अपना शिकार


यह क्या हो रहा है


क्यों हो रहा है


सब रहस्य बना था


पर यह हो रहा था हमारे सामने


मोहल्ला वहां जमा था


वे पीटते रहे ढोल


बड़े गर्व से कहते यह सभ्य लोगों का मोहल्ला है


उनमें से कोई कहता


कैसे-कैसे आकर बसे हैं, सफाई करनी पड़ेगी


वे आदेश भरी धमकी भी देते


पीटते रहो दरवाजा, नहीं खुले तो तोड़ दो


100 नम्बर पर डायल करो


 


अब भी अन्दर से आ रही थी आवाज


जैसे कोई जानवर दहाड़ रहा हो


पर कोई नहीं आगे आया


दरवाजा उनसे कोसो दूर था


लाइनें व्यस्त थीं या उनके मोबाइल का बैलेन्स खतम


किसी ने नहीं किया 100 नम्बर पर डायल


बस, वे बहस करते रहे


और ताकते रहे एक दूसरे का मुंह


 


इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कर सकते थे


आखिरकार, यह सभ्य लोगों का मोहल्ला था जो।


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