कविता - प्रकृति श्रृंगार - गीता गुप्ता 'मन'

कविता - प्रकृति श्रृंगार - गीता गुप्ता 'मन' 


प्रकृति श्रृंगार


 


है धरा किए अतुल श्रृंगार


करती नित खुशियों का प्रसार


है पीत हरित वस्त्र तन पर


खिल उठे रक्त पुष्प स्निग्ध अधर


 


है शाख शाख प्रमुदित, विह्वल


करती स्वागत ये प्रकृति विमल


है खेल रहे होली तरुवर


सजती स्मित है अधरों पर।


 


वचपन भी है यौवन भी है


संग खेल रहा उपवन भी है।


उड़ रही तितलियाँ इधर उधर


कभी शाखों पर कभी पत्तों पर


 


है उमड़ रहा अनुराग हृदय


मन पुलक रहा कर लूँ संचय।


बचपन की प्यारी किलकारी


वरसे है पुष्प हो बलिहारी


 


मनभावन दृश्य देख कर मन


करता है प्रकृति को कोटि नमन


                                                                        सम्पर्क : गीता गुप्ता 'मन' पता-राधागंज, बिहार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश मो.नं. : ९४५३९९३७७६