कविता - नाता - गीता गुप्ता 'मन'
नाता
सम्बन्धों को परिभाषित करता
धागा ये रिश्तों नातो का..
स्नेह, प्रेम सुख दुःख सम्बल है
प्रेम भरी उन बातों का...
जोड़ा है मानव से मानव को,
ये नाते है जग से अनमोल
अभिसिंचित प्रीति से ये उपवन
कलि कुसुम रहे है मधु घोल।
मर्यादा जिसकी नींव बनी
रिश्तों नातों का सुगढ़ भवन।
बसता है कण कण में अनुराग
होता पल में संताप शमन
अहंकार मदभेद तोड़ते
है पल में नाते सारे
टूट रहे परिवार आज सब
खड़ी हो रही दीवारें।
प्रेम प्रकाश भरे जीवन में
करके मदभेदों को दूर
अपनों की कर क्षमा गलतियाँ
सजते नातों के कोहिनूर
सम्पर्क : गीता गुप्ता 'मन' पता-राधागंज, बिहार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश मो.नं. : ९४५३९९३७७६