शालिनी मोहन - शिक्षा : एम.बी.ए. (ह्यूमन रीसोर्स) विभिन्न राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित। 'अहसास की दहलीज़ पर' साझा काव्य संग्रह के. जी. पब्लिकेशन द्वारा 2017 में प्रकाशित। रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से कविता संग्रह 'दो एकम दो वर्ष 2018 में प्रकाशित।
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मोक्ष
हम छोटे से बड़े हो जाते हैं
उसी तरह
जैसे करता है वह तपता गोला
पूरब और पश्चिम
उसी एक आकाश में
पाने को एक आकार
या क्षितिज की सुन्दरता
या फिर उस लता की तरह
जो वशीभूत करती है
उस वृक्ष को
ऊपर चढ़ने, पसरने को
तृप्ति, प्राप्ति, मोक्ष
एक जागृति
छोटे थे
बातें बड़ी-बड़ी थी
निर्जीव खिलौने, वस्तुओं के
मन को पढ़ना, झाँकना
उनके कानों में
शब्दों को छोड़कर
सीधे उनके मन पर
अंकित करने को
फिर एक उजली खिलखिलाहट
एक स्पर्श
ट्रेन में हमेशा
खिड़की के पास बैठना
और अपने दोनों
हाथों को फैलाकर
चलते-फिरते
पेड़...नदी...पहाड़...को
छूने की कोशिश
एक संतुष्टि
कहानियों में जीना
दादी-नानी की
परी और राक्षस वाली कहानी
खत्म हो जाती थी
तलवार की एक नोंक पर
चीरते हुए राक्षस का कलेजा
एक अंत
कहानियाँ अभी भी
अंतहीन
हम छोटे से बड़े हो गए हैं
चीरते हुए राक्षस का कलेजा
एक अंत
कहानियाँ अभी भी
अंतहीन
हम छोटे से बड़े हो गए हैं
सम्पर्क सुशीला रेसिडेंसी अपार्टमेंट, फ्लैट न. 303, मछली गली, राजा बाजार, पटना-800014, बिहार