कविता -जैसा कि हमें पता था - दफै़रून

 


जैसा कि हमें पता था


 


जैसा कि हमें पता था


कि अब हँसने, गाने, गुनगुनाने पर


कोई पाबंदी नहीं है


अब हम कहीं भी


हँस, गा,और गुनगुना सकते हैं


 


वाकई वहाँ उस शहर में भी


इन सब पर कोई पाबंदी नहीं थी


हमने जहाँ चाहा,


खूब हँसे, गाए, गुनगुनाए


 


पर तभी कुछ ऐसा घटा


हम कि हम रो पड़े, और हम रो पड़े


 


ये बेहद चौंकने का वक्त था


हर तरफ़ सायरन बजने लगे थे


हर तरफ़ से घिरने लगी थी पुलिस


चारों तरफ दौड़ने लगीं थीं सरकारी मिशनरियाँ


 


कि तभी किसी ने


हमारा हाथ पकड़ा


और खींचता ले गया अंधेरे कोने में


अपने ओठों पर उँगली रखे


चुप रहने का संकेत करता


खड़ा रहा तब तक दुबका, दुबकाए


जब तक हलचल शान्त नहीं हो गई पूरी तरह


 


हम कुछ बोल पाते कि वह बोला -


मूर्यो, यहाँ हँसने, गाने और गुनगुनाने की ही आज़ादी है


रोना तो यहाँ सख्त मना है।


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