कविता - हम - अनिता रश्मि

कविता - हम - अनिता रश्मि


 


हम


 


वह जो खेतों में


बड़ी हसरतों से


छींट रहा है वीज


कर रहा वुआई है


अपनी आस की गठरी


अपने पिचके पेट पर वाँधे हुए


उस अँकुराती फसल को सहेजता


पालता बढ़ाता वह


एक उम्मीद के सहारे है


 


हमारी उदर पूर्ति में है


उसकी भूख और पेट भरने का


अनोखा हिसाब-किताब


खेतों के पैर भारी होते ही


उम्मीद उसकी आँखों को


रौशन कर डालती है


करियाये वादल के,


वर्षा के डरावने रूप को धत्ता बता


 


हमारी भूख मिटाते-मिटाते


वह पूरा मिट जाता है


और हम दो-दो रुपये के


गणित में उलझ


उससे उलझ पड़ते हैं


उसके बहुमूल्य श्रम को


सिरे से नकार !


                     संपर्क : १सी, डी ब्लॉक, सत्यभामा ग्रैंड, पूर्णिमा कॉम्पलेक्स के पास, कुसई, डोरंडा, राँची-८३४००२, झारखण्ड