दुर्लभ प्रजाति
पीपल पर बैठा हुआ कबूतर घबराहट में उड़ जाता है
मुझे देखते ही गाएं असमंजस में उठकर चल देती हैं।
मैंने जितनी भटकती आत्माओं के बारे में सुना
वो सब की सब दुखों से भरी
और अधूरी इच्छाओं के चक्रों में फंसी हुई थीं।
जितने चेहरे मैंने पहचाने
उनके पास अपनी ही समझ थी
वो झुर्रियों को शत्रु समझ
अपने ही चेहरे को बार -बार रगड़ रहे थे।
जो दो पैरों और दो हाथों वाली सममित आकृतियाँ थीं
वो रोटी के साथ नाखून तक चबाने में माहिर थीं
जब मेरे शव को अन्त्एष्टि दी जाएगी
तब वो चबाए हुए नाखून रह जाएंगे
शेष जिस्म थोड़ा-थोड़ा कर
बाकी लोगों के जिस्मों में छुप जाएगा
जो हुके और चिलम का इस्तेमाल कर
मुझे धुएँ की तरह उड़ाने की कोशिश करेंगे
वो ऐसा इसलिए करेंगे क्यों कि मैं सच जानता हूँ
और मंटो की तर्ज पर कहूँ
तो हम भी मुँह में जबान रखते हैं।''
यदि मेरी लाश के साथ वो
यह सुलूक ना करके, दफ़नाने का विचार करें
तब भी नमक के साथ गड़ा हुआ
मेरा बदन सिकुड़कर उसी पीपल का बीज बन जाएगा
जिस पर बैठा हुआ कबूतर उड़ जाता है
तब कबूतर को मैं दोस्त बनकर बताऊंगा
कि वह मेरी पनाह में सुरक्षित है
और अपने हाथों को शाखाओं में तब्दील कर
मैं गायों को जाने से रोक लूंगा।
जाने क्यों?
सम्पर्क में आई सारी प्रजातियाँ मनुष्यों जैसी थीं
पर समाजशास्त्र पढ़ते हुए मैंने जाना
कि मनुष्य एक दुर्लभ प्रजाति है
जिसका जिक्र विज्ञान ने कहीं नहीं किया था
जीव विज्ञान के जनक अरस्तू को
फिर से जन्म लेना चाहिए कि नहीं?
सम्पर्क : मो.नं. : 7726060287