कविता - दांत जैसे दिन - विनीता परमार 

 


दांत जैसे दिन


 


मां के जाने के बाद


पिता अब कुछ बातें हम से भी कह जाते


बचपन के किस्सों में


बाबा, बड़का बाबा, आजी


सबकी बातें एक-एक कर दुहराते।


मुझमें या अपने नाती में


खुद के चेहरे को ढूंढ़ते


अक्सर कहते


जीवन में तैरना व खाना बनाना


सबको आना ही चाहिए।


छपरा अलियर स्टैंड तालाब में


एक सांस में तैरना फिर लौट आना


सांपों को मारने के निशाने


तो हर सुख दुःख में डटे रहने की कहानी


सौ रुपए की आज ली नई 'रेले' साइकल को


एक दिन बाद जाने


किस मजबूरी में कल होकर


निनानबे में बेचने का


दर्द आज भी दिखता है।


बाढ़ के उतरने के बाद


फिर से लौट आने की जिद


आग के बाद लौटना मुश्किल


दांतों के जाने के बाद


दांतों से कसैली काटने के


किस्से के पीछे


रीतते दिनों में देखते हैं


लौट जाना


वक्त के पास जो चला गया।


                                                                                              सम्पर्क : केंद्रीय विद्यालय रामगढ़ कैंट, झारखंड, मो.नं. : 7633817152