ग़ज़ल - संजू शब्दिता, भादर अमेठी ,उत्तरप्रदेश
ग़ज़ल
खुद से कुछ यूँ उवर रहे हैं हम
इक भंवर में उतर रहे हैं हम
जिन्दगी कौन जी रहा है यहां
मौत में जान भर रहे हैं हम
मौत के बाद जिन्दगी होगी
ये समझकर ही मर रहे हैं हम
अब संवरने का लुत्फ़ जाता रहा
आईने में बिखर रहे हैं हम
इश्क़ पहले भी तो हुआ है हमें
क्या नया है जो डर रहे हैं हम
जो भी चाहे हमें सज़ा दे दो
वायदे से मुकर रहे हैं हम
वक़्त अपनी जगह पे कायम है
बस मुसलसल गुजर रहे हैं हम
संजू शब्दिता, भादर अमेठी ,उत्तरप्रदेश