ग़ज़ल - संजू शब्दिता
इक उसके दर के सिवा मैं कहाँ, किधर जाती
उसे पुकारते ये ज़िन्दगी गुज़र जाती
मुझे लगा था वो मेरे बगैर मर जाता
उसे लगा था मैं उसके बगैर मर जाती
मुझे तो इश्क़ भी प्यारा था और दुनिया भी
जुदा थे रास्ते दोनों के मैं किधर जाती
हज़ारों ऐब हैं मुझमें मगर सुनो तो सही
तुम्हारे प्यार की शिद्दत में मैं सँवर जाती
ये मुझको जहर पिलाने की क्या ज़रूरत थी
तुम्हारे कहने से ही जान मैं तो मर जाती
सफर तवील था रस्ते में सब उतरते रहे
वो शहर आया नहीं मैं जहाँ उतर जाती
ग़ज़ल संजू शब्दिता, भादर अमेठी ,उत्तरप्रदेश