ग़ज़ल - संजू शब्दिता,

ग़ज़ल - संजू शब्दिता,


 


उसने इस तरह हमको बस में रखा


जैसे सांसों को भी क़फ़स में रखा


 


जिन्दगी ने हमें हवस में रखा


यूँ सराबों के दस्तरस में रखा


 


हम तो खुद ही गुलाम थे उसके


फ़िर भी उसने हमें कफ़स में रखा


 


उसने रक्खा हमें अज़ाबों में


हमने उसको मगर नफ़स में रखा


 


फिर वही सिलसिले दलीलों के


फिर वही मुद्दआ बहस में रखा


 


उस परिंदे को दे दिया परवाज़


और फिर हद को दस्तरस में रखा


                                                                                                              ग़ज़ल संजू शब्दिता, भादर अमेठी ,उत्तरप्रदेश