ग़ज़ल - संजू शब्दिता,  

ग़ज़ल - संजू शब्दिता,  


 


पहले तो खुद की जान, को सोचा


बाद उसके जहान को सोचा


 


जिन्दगी भर ज़मीन का खाए


मरने तक आसमान को सोचा


 


तीर सारे निकल गए आखिर


कब किसी ने कमान को सोचा


 


तंग आकर बेरोजगारी से


आखिरश अब दुकान को सोचा


 


जब शराफ़त से पेश आया वो


हमने उसके गुमान को सोचा


 


वो जमींदोज हो गया तब से


जब से हमने उड़ान को सोचा


 


                                                                                                     ग़ज़ल संजू शब्दिता, भादर अमेठी ,उत्तरप्रदेश