ग़ज़ल - संजू शब्दिता,
इक उसके दर के सिवा मैं कहाँ, किधर जाती
उसे पुकारते ये ज़िन्दगी गुज़र जाती
सुकूँ मेरे लिए रक्खा कहाँ है
मेरा हर जाविए से इम्तिहां है
नहीं, ये झूठ हैं हिजरत के आंसू
मुहाजिर हूँ मेरा घर ही कहाँ है
मुझे खुश देखना चाहोगे क्या तुम
मेरा हंसना उदासी में निहाँ है
निकल आए हैं खुद से दूर अब हम
कोई वहशत हमारे दरमियाँ है
बला क्या है ये दुनिया क्या बताएं
ये अंधी और बहरी बेजुबाँ है
संजू शब्दिता, भादर अमेठी ,उत्तरप्रदेश