कविता - नया कोलंबस - विशाल किशनराव अंधारे
कहाँ जाते होंगे वो लोग
जो दंगों में मर जाते है
कहाँ दब जाती है वो आवाजें
जो सच की तलाश में होती हैं
वो बच्चे जिनके पीठ पर
स्कूली बक्से नहीं होते
वो औरतें जो अपनी जुबां खोल मांगती है अपने अधिकार
वो मजदूर जो बिना टिकिट
चलती ट्रेनों से मार देते है छलांग
और आ जाते है मौत की चपेट में
कहाँ जाते होंगे वे गरीब लोग
जो अस्पताल के बाहर दम तोड़ देते हैं
जिनके पास नहीं होती है उतनी फीस जिससे कर सके वो
इलाज अपना
कूड़ेदान का खाना खाते खाते कुछ बच्चे जो छोड़ देते है अपनी जान
वो भी कहाँ जाते होंगे
वो बेसहारा जो पुलों ने नीचे बना लेते है अपना आशियाना
बाढ़ में बहकर कहाँ पहुँचते होंगे
क्या वो बचपन में
गायव हुई गेंदों की तरह
गायब ही होते है जंगल में
जिनके मिलने के स्वप्न ही आते है जीवनभर
या उस प्लूटो की तरह
छोड़ जाते है वो ये सूर्यमाला
या वो सब के सब
खदेड़ दिए जाते होंगे
ग्रहण के उस काले अंधेरे में
या बंद पड़े ज्वालामुखी से उन्हें
उतारा जाता होगा पृथ्वी के गर्भ में
या उन्हें मिल जाती होंगी
नयी दुनिया
क्या कोई इन्हें भी
खोजने निकल सकता है
इस सदी का
नया कोलंबस
सम्पर्क : विशाल किशनराव अंधारे पोस्ट-मुरुड, जिल्हा- लातुर, महाराष्ट्र, पिन-४१३५१०
मो.नं. : ९८६०८२४८६८, ८९९९१५२३२२