स्त्री
उसने तुम पर शक किया
नंगा किया, पेड़ से बांधकर कोड़े बरसाए
लोग देखते रहे चुपचाप तुम्हारा पिटना
तमाशे से ज्यादा कुछ नहीं था तुम्हारा पिटना
तुम्हारी चीखें बंद हो गईं, तुम लटक गयी रस्सी पर
फिर भी कोड़ा बरसता रहा
उसने तुम्हारा सिर घुटवाया
उस पर कालिख से लिखा, डाइन
और जुलूस निकाला गलियों में
ईंट, पत्थर और कचरा फेंका गया तुम पर
खून से लथपथ पसर गई जमीन पर
फिर भी पत्थर गिरते रहे तुम्हारे जिस्म पर
उसने तुम्हारी नाक काटी
तुम्हें जलाया, डुबोकर मारा
गर्भ में ही मां के नाभिनाल से अलग कर दिया
तुम्हारे चेहरे पर तेजाब फेंका
स्वाद बदलने के लिए हरम में रखा
तुम्हें प्रेम करने से रोका
सोचने और फैसले करने से मना किया
माना कि यह सब इतिहास है
और एक बड़ी छलांग लगाकर
तुम इतिहास से बाहर आ खड़ी हुई हो
लेकिन खतरा पूरी तरह टला नहीं है
क्रूर, निर्मम और नृशंस निगाहें
अब भी पीछा कर रही हैं तुम्हारा
पीछे मुड़कर मत देखो
सोचो और तय करो, किस ओर जाना है
तुम गुलाम नहीं हो, आधी भी नहीं हो
किसी की अपेक्षा से परे तुम हो, पूरी हो
आओ, आगे बढ़ो और रचो
तुम रच सकती हो
आदमी का भविष्य
भविष्य का आदमी
७/११/२०१८