कविताएं -  लुटेरा समय  - बसंत त्रिपाठी 

लुटेरा समय


 


आप हमेशा


अँधेरी रात या सुनसान रास्तों पर ही


नहीं लुटते


 


लूटने के लिए


हमेशा गर्दन पर


चाकू की नोक नहीं टिकाई जाती


सेंधमार केवल ताले तोड़कर


अपना हुनर नहीं दिखाता


 


आप मुस्कुराते हुए भी लूटे जाते हैं


जब बीमार होते हैं


और दवा खाकर


बेहतर महसूस कर रहे होते हैं


ठीक उस वक्त भी लूटे जा रहे होते हैं


 


पानी पीते खाना खाते


यहाँ तक कि सपने देखते हुए भी


आप लुटते हैं


 


बहुत खुश हुए थे जब आप


'गोदान' के बाद 'युद्ध और शांति' पढ़ रहे थे


आप संवेदना की ऊँची चोटी पर थे


लेकिन प्रकाशक ने आपको लूट लिया था


जब इतिहास पढ़ रहे थे


तब लुट रहे थे


 जब राष्ट्रगीत पर तनकर खड़े थे


तब लुट रहे थे


 


टीवी दिखाते हुए लुटता


तो खैर


लटने की घटना सर्वत्र स्वीकत है


धार्मिक और लोकतांत्रिक लूट पर बहस


अब बंद हो चुकी है


 


इस लुटेरे समय का आलम यह है


कि यहाँ कोई किसी जगह लुटता है


और अगले ही पल


किसी को लूट रहा होता है।