सुभाष राय- जनवरी 1957 में उत्तर प्रदेश के जनपद मऊ के गांव बड़ागांव में, आगरा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध साहित्य संस्थान के.एम.आई. से हिंदी भाषा और साहित्य में स्नातकोत्तर। उत्तर भारत के विख्यात संत कवि दादूदयाल के रचना संसार पर डाक्टरेट। चार दशकों से पत्रकारिता। सम्प्रति लखनऊ में जनसंदेश टाइम्स के प्रधान संपादक के रूप में कार्यरत। हिंदी क्षेत्र की लगभग सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं। बोधि प्रकाशन से एक काव्य संग्रह 'सलीब पर सच' और अमन प्रकाशन से लेखों का संग्रह 'जाग मछ्न्दर जाग' प्रकाशित। नयी धारा रचना सम्मान।
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आग लिख दें
आ तुम्हारे भाल पर मैं आग लिख दें
राग लिख दें, फाग लिख दें
जाग, केवल जाग लिख दें
क्रोध जागा, लालसा जागी
जगी है धूर्तता, पाखंड में डूबी हुई
लालच सनी उद्दाम आकांक्षा हमारी
स्वार्थ से लाचार जीवन मूल्य, मानवता यहाँ
महसूस करती है पराजित और हारी
आग है तो पाँव में गति है
प्रबल विश्वास की लौ जल रही भीतर
हृदय उम्मीद से लबरेज़
सम्भव हो सकेगा चीर कर
अँधियार, उसके पार जाना
आग है तो ज़िन्दगी में जूझने का
जूझकर कुछ नव्य रचने का
सहज संकल्प भी होगा
आग देती रास्ता संधान का
कुछ खोज, आविष्कार का
आग से है ध्वंस का रिश्ता न केवल
सर्जना, निर्माण का भी मूल है ये
आग होगी तो निरीहों,
वंचितों के साथ बन आवाज उनकी,
रण रचेगा और डंके सा बजेगा
आग है तो तर्क है, विज्ञान है
कुछ जानने की, खोजने की लालसा है
आग में हम, आग से हम
आग से है विश्व सारा
बोलना आया नहीं तो
नष्ट हो जाना नियति है
आग बनकर बरसना
अन्याय, अत्याचार पर
सीखा नहीं तो व्यर्थ में ही
हो गया स्वाहा समझ सम्पूर्ण जीवन
आ बताऊँ आज तुमको
आग का इतिहास क्या है
आग का भूगोल क्या है
तितलियों का, फूल का
आकाश में उस इंद्रधनुष का
मोहता जो रंग मन को
बोल उसका मोल क्या है
खोजना खुद को समय में
उतरना अंत:करण में
आइना बनकर जगत को
देखना अपने हृदय में
हो सके ऐसा अगर तो
एक पल की ज़िन्दगी से
जगत में अनमोल क्या है
पूछता हूँ खोलकर मैं
कम्प क्या, भूकम्प क्या
हर ओर डांवाडोल क्या है।
विकट है यह वक्त सब सहमे-डरे हैं।
पहल करने का नहीं साहस बचा है
यहाँ तो सब लोग सचमुच
इक अजाने, सरसराते
अजनबी भय से भरे हैं।
आग ऐसे में जरूरी
जानना होगा सभी को
आग से रिश्ता स्वयं का
जाँचना होगा सभी को
आ अभी है वक्त
भीतर एक चिनगारी जला ले
ध्वज उठा बदलाव का हलचल मचा दे
वंचना, शोषण जहाँ भी है
उसे लड़कर मिटा दे
आग की संतान हैं हम
मनुज मंगल गान हैं हम
ज़रूरत जब भी पड़ी
भूकम्प हैं, तूफ़ान हैं हम
सृष्टि का सिद्धांत है ये
बख्शती है आग केवल आग को'
आग जिनमें है बचेंगे
और सब जलकर मरेंगे
..और ..सब ..जलकर ...मरेंगे