कविता -    मगध, जो डूब रहा है   - लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता 

 


मगध, जो डूब रहा है


1


अतीत को डूबते हुए


देखते रहे हैं हम


शताब्दियों से


यह अलग बात है कि


उसकी स्वर्णिम छवियां


(जिसका साक्ष्य किंवदंतियों के हवाले रहा)


जो अवशेषों के रास्ते


हमारी नसों में दौड़ती रही


पहरों-पहर, बरसों-बरस, युगों-युग हम सुनाते रहे


हर आने-जाने वाले को


मगध के चक्रवर्ती सम्राट की यश गाथाएं


अपार सुख के साथ


कि याद है वह सम्राट


जिसके भाले की नोंक से


पत्थरों में झरने फूट पड़े थे


और जिसका अँजुरी भर जल


प्रजा के शरीर में सोने की चमक


बिखेर देता था


जिसकी आंखों के आँसू से


क्षितिज के इस छोर से


उस छोर तक का सारा दुःख


एक युवराज के हृदय में समा गया था


जिसकी व्याकुलता से बहने लगी थी


गंडक


जिसके पानी से


अपनी थकान उतारी थी


बीसवीं सदी के महापुरुष ने


कि याद है वह चक्रवर्ती सम्राट


जिसने बनवाई थी


कभी न सूखने वाली स्याही


जिससे लिखे गए


नालंदा के सारे ग्रंथ


जिसकी चमक अंतिम साँस ले रही है


जार्ज आरवेल के वीरान घर में!


2


गांधी अपने चश्मे से


डूबते हुए देख रहे


मुस्कुराते हुए बच्चे को


और धू-धू कर जल रही है


उनकी देह बारिश के बीचों-बीच


 


संसार का दुख आंखों से नहीं


आकाश से टपक रहा है


जिसमें डूब रही है यशोधरा


और पीला पड़ रहा है


बुद्ध का चमकता हुआ चेहरा


 


मगध का वह चक्रवर्ती सम्राट


जलप्लावन का दृश्य देखकर


अपनी सेना समेत


लौट आया है उल्टे पांव


और आत्महत्या की तैयारी में व्यस्त है


चाणक्य की सारी नीतियां


भंवर की चपेट में है


और वह सहमा हुआ सा


अपने झरोखे से देख रहा है


कि आहिस्ता-आहिस्ता डूब रहा


समूचा मगध!


 


3


गोलघर पर चढ़ते हुए लोग


डूब रहे हैं


डूब रहा है


पाटलिपुत्र !


 


                                                                  सम्पर्क : ग्राम-बिशम्भरपुर, पोस्ट - मेहसी, जिला-पूर्वी चंपारण-845426, बिहार


                                                                                                                 मो.नं. : 9455107472, 6306659027