कविता - कुछ भी कहें - नरेन्द्र पुण्डरीक

नरेन्द्र पुण्डरीक-जन्म : 6 जनवरी 1954, बांदा, ग्राम-कनवारा केन किनारे बसे गांव में समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण कवियों में से। कविता के महत्वपूर्ण आयोजनों में भागीदारी कविता और आलोचना की अनेक पुस्तकें प्रकाशित। वर्तमान में : केदार स्मृति शोध संस्थान बांदा के सचिव, 'माटी' पत्रिका के प्रधान संपादक एवं केदारसम्मान, कृष्ण प्रताप कथा सम्मान, व डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान के संयोजक


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कुछ भी कहें


 


मेरे साथ पढ़े थे क, ख, ग


मेरे साथ ही पैदा हुए थे


कुछ माह आगे पीछे


हर खेल में वे ही


हारते हुए जीतते थे,


पता नहीं यह क्यों और कैसे हुआ
जो मेरे बहुत अजीज थे


वे मेरे साथ आगे नहीं पढ़े बढ़े


जबकि मुझसे कहीं


बेहद कुशल और अच्छे थे,


सुबह आंख साथ खुलती थी


साथ नया सूरज देखते थे
सबकी साफ सुथरी आंखों में


नीला आकाश बसा था


जिसमें कभी हमारे साथ


उनके भी सपने कुलांचे मारते थे,


इनमें से कुछ


मेरे साथ आगे आए लेकिन


कब कैसे और कौन सी मजबूरी थी कि


वे विद्रोही और अपराधी कहलाए


कुछ भी कहे


इसमें कुछ अपनी भी


कुछ चूक शामिल होती है और


कुछ व्यक्तिगत काइंयापन


हम न कहे भले ही लेकिन


भीतर कहीं सच्चाई हूक सी करकती है।


                                                           सम्पर्क : डी.एम. कालोनी, सिविल लाइन, बांदा-210001 मो.नं.: 9150169568, 8948647444