समीक्षा - उपेक्षित कैनवास : नारी होने का अर्थ - विवेक सत्यांशु

अरस्तु ने कहा है-'काव्य का लक्ष्य एक उच्चस्तरीय आनन्द प्रदान करना है। किन्तु आज के समय में जिस तरह से काव्य का सृजन हो रहा है, उससे कविता की काव्यात्मकता भी नष्ट हो रही है और आनन्द की उच्चता का भी क्षरण हो रहा है। आज ज्यादातर लोग खराब कविता लिख रहे और उसे अच्छी कविता की तरह प्रचारित कर रहे हैं ऐसे ही लोग 'कुकवि' कहलाते हैं। भामह ने लिखा है- 'कविता नहीं करने से न तो अधर्म होता है, न रोग, न दंड। किन्तु कु-कविता तो साक्षात मरण है।'


    डॉ. जूही शुक्ला समकालीन कविता की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। 'उपेक्षित कैनवास' जूही जी की कविताओं का नवीनतम संग्रह है। इन कविताओं में भावधारा की बहुरंगी छटाएँ देखने को मिलती हैं। समय के साथ आँख मिलाती ये कविताएँ समकालीन जीवन के यथार्थ के अनेक आयामों को उद्घाटित करती हैं। डॉ. जूही शुक्ला एक संवेदनशील चित्रकार भी हैं, स्त्री भी हैं। किन्तु विडम्बना यह है कि सबके लिए मानवीय-संवेदना रखने वाली स्त्री की स्थिति खुद करुणाजनक बनी रहती है। मैथिलीशरण गुप्त की कविता की इन पंक्तियों की वह हमेशा पात्र बनी रहती है-


    'अबला जीवन हाय तुम्हारी


    यही कहानी,


    आँचल में है दूध और


    आँखों में पानी।'


     किन्तु अकविता के कवियों ने औरत को 'देह' से ज्यादा कुछ नहीं माना।


    कविता के कवियों ने औरत के 'देह' को सिर्फ चीरा फाड़ा। यहाँ तक कि धूमिल जैसे चर्चित कवि ने भी औरत को सिर्फ देह का महत्व दिया है-


    'औरत आँचल है,


    जैसा कि लोग कहते हैं, स्नेह हैं


    किन्तु मुझे लगता है-इन क्षेत्रों से


    बढ़कर औरत सिर्फ 'देह' है।'


    अपनी एक अन्य कविता में भी धूमिल ने स्त्री के पुरुषार्थ को चुनौती देते हुए इसकी अस्मिता पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया है जिसका कई स्त्री संगठनों ने विरोध भी किया। वह कविता है


    'हरेक का दरवाजा


    खटखटाया है, मगर


    बेकार ... मैंने जिसकी


    पूछ उठाई है


    उसको 'मादा' पाया है।'


    यह कविता स्त्री के अस्तित्व को सिर्फ नकारती ही नहीं, बल्कि उसके अस्मिता बोध पर आक्रामक ढंग से चोट भी करती हैमादा' के रूप में उसके कमजोर पक्ष को मुहावरे के रूप में तब्दील करती है। इसी रूप में साठोत्तरी पीढ़ी के कथाकारों में भी केवल बिस्तर के रूप में इसका इस्तेमाल किया है। इसी तरह महिला कवयित्री भी क्रांतिकारी भूमिका में अपना तेवर दिखाती हैं। उसमें डॉ. जूही शुक्ला भी महत्वपूर्ण है। अपनी 'औरतें' कविता में जूही समकालीन समय के औरतों की संवेदना को प्रभावशाली ढंग से रेखांकित करती है।


    जूही जी की कविता देखें


    **औरतें कमजोर नहीं होती


    औरतें बाजारू भी नहीं होती


    औरतें सिर्फ औरतें भी नहीं होती


    औरतें इंसान होती हैं''


    जूही शुक्ला समकालीन कला जगत की एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। चित्रकार एवं कला समीक्षक रामचन्द्र शुक्ल जूही के चित्रों की प्रदर्शनी के संदर्भ में लिखते हैं- “डॉ. जूही के चित्रों की प्रदर्शनी देखकर लगा कि जूही अब खिल गई है। जूही जब खिलती हैं तब अपने चारो ओर सुगन्ध दर्शाती है। अब प्रदर्शित चित्रों में भी जूही की सुगन्ध है, अपनापन है। ज्यादातर चित्र अपवादी दिशा को इंगित करते हैं। वैसे जूही के काव्य प्रेम की झलक इन चित्रों में दिखती है।


डॉ. जूही शुक्ला उपेक्षित कैनवास की भूमिका में लिखती हैं। कविता अनायास फूटती है। जब दर्द गहरा हो जाता है, अभिव्यक्ति के सारे द्वार बन्द हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं तब असहाय मानव मन की तड्प काव्य के माध्यम से सुकून पाती है और इन्हें संजो लेने पर अपना दर्द बाँटने की खुशी हमें इंसान बनाती है। कविता ....संवेदना का दूसरा नाम है।''


    यह भी कहा है- 'काव्य अविचारित रमणीयता है। क्योंकि यह भावना की चीज है, 'इमोशन' के रूप में अभिव्यक्ति है, जिसमें विचारों की प्रधानता नहीं होती, भावना प्रमुख होती है। हालाँकि मुक्तिबोध लिखते हैं-


    ''अभिव्यक्ति के सारे खतरे


    उठाने ही होंगे, तोड़ने होंगे ही


    गढ़ और मठ सब/पहुँचना


    होगा दुर्गम पहाड़ों के उस पार''


    इसी तरह औरत भी सारे खतरे उठाती है। जूही अपनी कविता में लिखती हैं-


    ''मैं तो अपने आपको घिसती हूँ।


    सुबह से शाम तक....


    इस घिसाई से, चिंगारी


    निकलती है


    सभी औरतें घिसती है स्वयं को


    गृहस्थी के लिए


    जीविका के लिए


    उन्हें कहीं फुरसत


    सर्दी, गर्मी सोचने की


    इस कविता से औरत की अदम्य जिजीविषा और संघर्ष को समझा जा सकता है। अपनी एक कविता में जूही कहती है-


    नकारात्मक सकारात्मक की


    सहयोगी है जैसे जीत की हार


    वाल्जाक भी कहता है कि निराशा से ही पता चलता हैकि आशा कितनी बलबती होती होगी। वास्तव में 'उपेक्षित कैनवास' से बहुत बड़ी संभावनाओं की आहट का पता चलता है।


    समीक्षित कृति : उपेक्षित कैनवास (कविता संग्रह), लेखिका : डॉ. जूही शुक्ता, प्रकाशन : उमेश प्रकाशन, १००, लूकरगंज, इलाहाबाद


    सम्पर्क : 14/12 शिवनगर कॉलोनी, अल्लापुर, इलाहाबाद-211006, उत्तर प्रदेश मो.नं. : 7068327987