रिपोर्ट - 75 पार राजेन्द्र कुमार : रचना सिर्फ सकलम नहीं बल्कि सकर्मक होनी चाहिए


      इलाहाबाद में स्थित सेंट जोसेफ कालेज' के 'हॉर्गन हॉल' में ३१ मार्च को 'जसम' के अध्यक्ष प्रसिद्ध वरिष्ठ कवि-आलोचक एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. राजेंद्र कुमार के ७५ वर्ष पार होने पर 'जसम', 'जलेस' और 'प्रलेस' ने संयुक्त रूप से एक भव्य समारोह का आयोजन किया। यह संयुक्त समारोह दो सत्रों में सम्पन्न हुआ। प्रथम सत्र में मंचासीन थे वरिष्ठ आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय, आलोचक विजय बहादुर सिंह, कवि-आलोचक राजेंद्र कुमार, तद्भव के सम्पादक कथाकार अखिलेश, आलोचक वीरेंद्र यादव, प्रो. कमलानंद झा, आलोचक रवि भूषण, कवि हरिचंद्र पाण्डेय, प्रो. अनीता गोपेश। क्रांतिकारी गीत और माल्यार्पण के पश्चात सर्वप्रथम डॉ. जनार्दन ने राजेंद्र कुमार के कहानी संग्रह 'अनंतर तथा अन्य कहानियाँ' पर अपनी बात रखीबकौल वक्ता प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने इनकी कविताओं में साम्राज्यवाद विरोधी चेतना के स्वर की सराहना की। जनमत के ताजा अंक में राजेंद्र कुमार की कुंभ पर प्रकाशित कुछ कविताओं का जिक्र भी किया, साथ ही नवलेखकों के लेखन को जनतांत्रिक बनाने पर बल दिया। बकौल वक्ता अलीगढ़ विश्विद्यालय के प्रो. कमलानंद झा ने राजेंद्र कुमार के लेखन की विज्ञानवादी दृष्टि को सराहा। उन्होंने यह भी कहा कि राजेंद्र कुमार सिर्फ साहित्य के आलोचक नहीं बल्कि आलोचनात्मक समाज बनाने के लिए संघर्षरत हैं। प्रो. अली अहमद फ़ातमी ने राजेंद्र कुमार को हिंदी उर्दू का सेतु बताया और कहा कि इनके व्यक्तिव में संतों का खमीर और सूफियों का ज़मीर घुल मिल गया है। कथाकार अखिलेश ने बतौर छात्र गुरू के रूप में राजेंद्र कुमार के योगदान को याद किया। कौमुदी और अभिप्राय में अपनी प्रारम्भिक रचनाएँ छपने का श्रेय राजेंद्र जी को दिया। उन्होंने कहा कि यदि राजेंद्र कुमार जैसे शिक्षक का सानिध्य न मिला होता तो वे जिस मुकाम पर आज हैं, वहाँ न पहुँचे होते। बतौर वक्ता वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र ने राजेंद्र कुमार के कुशल सम्पादक रूप की सराहना कीतकरीबन तीन चार दशक पहले प्रकाशित उनके कुछ लेखों की आज के समय में अधिक प्रासंगिकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि इनकी आलोचना जनतांत्रिक है, उसमें आत्मावलोचना निहित है। वरिष्ठ कवि हरिचंद पाण्डेय ने राजेंद्र कुमार की कविताओं में समाहित कानपुर के मिलों मजदूरों, कल-कारखानों की गूंज की ओर इशारा किया। उन्होंने बताया 'लोहा लक्कड़' भी इसी परिवेश का प्रतिफल है। बतौर वक्ता रांची से आए वरिष्ठ आलोचक रवि भूषण ने उनके साहित्य की समृद्धि के साथ साथ उनके व्यक्तिव की प्रशंसा की। आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि राजेंद्र जी अजातशत्रु हैंवे अध्यापक ही नहीं खुद एक गुरुकुल हैं। प्रख्यात लेखक प्रो. लाल बहादुर वर्मा ने राजेंद्र कुमार को बधाई देने के साथ-साथ तीनों संगठनों के एक होकर काम करने का आग्रह किया! कथाकार प्रो. अनीता गोपेश इनके व्यक्तिव की सरलता, सहजता के साथ अतीत के घरेलू लगाव को याद किया। सत्र के अंत में प्रख्यात् आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा राजेंद्र कुमार की कविताओं पर उनके वक्तव्य का विडिओ दिखाया गया। इस सत्र कुशल संचालन एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कुमार वीरेंद्र और के. के. पाण्डेय ने किया। इसके पूर्व प्रो. संतोष भदौरिया ने अतिथियों का स्वागत किया।


    दूसरा सत्र काव्य पाठ का था जो युवा कवि और सम्पादक संतोष चतुर्वेदी के संचालन में सम्पन्न हुआ। प्रथमतः इस सत्र में राजेंद्र कुमार जी ने अपना आभार वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि 'रचना सिर्फ सकलम नहीं बल्कि सकर्मक होनी चाहिए। उन्होंने काव्य पाठ भी किया। उनके अतरिक्त वरिष्ठ कवि मदन कश्यप, कवि हरिचंद पाण्डेय, कवि डॉ. पंकज चतुर्वेदी, डॉ. बसंत त्रिपाठी, डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्त, कवयित्री संध्या नवोदिता, कवि अंशु मालवीय, कवि अंशुल त्रिपाठी, डॉ. मनोज सिंह, मृत्युंजय, प्रियदर्शन मालवीय, बृजेश यादव ने कविता पढ़ी। इस अवसर पर शहर और बाहर के साहित्यानुरागी, विश्वविद्यालय के अध्यापक, छात्र और नागरिक समाज अधिक संख्या में उपस्थित थाधन्यवाद ज्ञापन जसम के महासचिव मनोज सिंह ने किया।


                                                                                                        अवनीश यादव, मो.नं. : 9598677625