लघु कथा-पश्चाताप -डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी - सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान) जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) लेखन - लघुकथा, पद्य, कविता, गज़ल, गीत, कहानियाँ, लेख


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उसका दर्द बहुत कम हो गया, इतनी शांति उसने पूरे जीवन में कभी अनुभव नहीं की थी। रक्त का प्रवाह थम गया था। मस्तिष्क से निकलती जीवन की सारी स्मृति एक-एक कर उसके सामने दृश्यमान हो रही थी और क्षण भर में अदृश्य हो रही थी। वह समझ गया कि मृत्यु निकट ही है।


    वह जीना चाह कर भी आँखें नहीं खोल पा रहा था। असहनीय दर्द से उसे छुटकारा जो मिल रहा था।


    अचानक एक स्मृति उसकी आँखों के समक्ष आ गई, और वह हटने का नाम नहीं ले रही थी। मृत्यु एकदम से दूर हो गयी, वह विचलित हो उठा। उसकी आँखों में स्पंदन होने लगा, एक क्षण को लगा कि आँसू आएंगे, लेकिन आँसू बचे कहाँ थे? मुंह से गहरी साँसें भरते हुए उसने उस विचार से दूर जाने के लिए धीरे-धीरे आंखें खोल दी।


    उसके सामने अब उसका बेटा और बहू खड़े थे। डॉक्टर ने बेटे को उसकी स्थिति के बारे में बता दिया थाउसकी आँखें खुलते ही बेटे के चेहरे पर संतोष के भाव आए, और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा, “पापा, आपकी बहू माँ बनने वाली है।''


      ''मेरा... समय.. आ... गया है...!'' उसने लड़खड़ाती धीमी आवाज़ में कहा।


    'पापा आप वादा करो कि आप फिर हमारे पास आओगे...हमारे बेटे बनकर...'' बेटे की आँखों से आँसू झरने लगे।


    वह बहू की कोख देख कर मुस्कुराया, फिर बेटे को इशारे से बुला कर कहा, “तू भी... वादा कर ... मैं बेटे की जगह... बेटी बनकर आया... तो मुझे मार मत देना...!''


    कहते ही उसके सीने से बोझ उतर गया। उसने फिर आँखें बंद कर लीं, अब उसे पत्नी की रक्तरंजित कोख दिखाईनहीं दे रही थी।


 


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