लघु कथा-किताब वाला इश्क - मार्टिन जॉन

मार्टिन जॉन -शताधिक कविताएँ, लघु कथाएँ, पत्र-पत्रिकाओं, वेब मैगजीन, ब्लॉग, फेसबुक समूहों में प्रकाशित। संकलनों में संकलित। आकाशवाणी से प्रसारित । प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत रेखाचित्र, कविता, पोस्टर बनाने में विशेष रुचि। दर्जनों कविता पोस्टर प्रदर्शितपत्रिकाओं में रेखाचित्र प्रकाशित। लघुकथा संग्रह 'सब खैरियत है' और कविता-संग्रह 'ग्राउंड जीरो से लाइव' प्रकाशित।


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किताब वाला इश्क


नौकरी से रिटायर होने के बाद उसने जो एक छोटा-सा घर बनाया, उसके बरामदे को पढ़ने-लिखने की जगह बना डाली। किताबों के प्रति उसका अगाध प्रेम और पढ़ने-लिखने के जुनूनी शौक की वजह से धीरे-धीरे बरामदा एक छोटी सी लाइब्रेरी की शक्ल में तब्दील हो गया। लेकिन पत्नी को किताब-कलम से उसकी दोस्ती कभी नहीं भाई। इस शौक को पूरा करने में जो खर्च हो रहा था, उससे वह चिढ़ी रहतीउसकी दृष्टि में बरामदे का यह बेजा इस्तेमाल था।


    इधर जवान बेटा अपने पापा के इस शौक को उनके पिछड़ेपन के रूप में देखता थाअक्सर वह तंज कसता, 'जुमाने के साथ कदमताल नहीं मिलाना चाहते हैं पापा! ....इस डिजिटल टाइम में भला कोई अपने घर को 'बुकस्टोर बनाता है? ....किताबों का ढेर लगाने की क्या जरुरत है। अब तो सब कुछ नेट में एवैलबुल है!'


    साल में दो-तीन मरतबा अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर पुराने अखबारों को तौलते वक्त रद्दीवाला रैक पर करीने से सजी पत्रिकाओं और किताबों को ललचाई नजरों से देखता  और थोड़ा सकुचाते हुए कहता, 'पुरानी हो गई हो तो दीजिए न बाबू!' प्रत्युत्तर में उसकी घूरती नज़र पाकर सकपका जाता।


    कुछ करीबी दोस्त भी उसके इस शौक को गैर जरूरी मानते थे। भेंट-मुलाकात के दौरान उनकी टिटकारियों पर वह सफ़दर हाशमी की किताब' वाली कविता की कुछ पंक्तियाँ सुना देता।


     एक रात उसकी लाइब्रेरी में आग लग गई। .... बत्ती गुल हो जाने की वजह से वह कैरोसिन लैम्प की रोशनी में कुछ लिखने में मसरूफ़ था कि असावधानीवश लैम्प लुढ़क गया। लैम्प से तेल बहते ही आग का शोला भभक उठा और सूखे पत्तों की तरह किताबें, पत्रिकाएँ जलने लगीं। बड़े जतन से सहेजी गई दिलो-जान से प्यारी चीज़ को यूँ खाक होते देख उसका कलेजा मुँह को आ गया। तत्काल बरामदे से बाहर निकलकर मातमी रुदन के साथ मदद के लिए पागलों की तरह चीखने चिल्लाने लगा। जब तक पड़ोसी आकर आग पर काबू पाते तब तक उसकी रूहानी चीज़ बेरहम आग के उदर में समा चुकी थी। दास्ताँ-ए-खाक बयान करने के लिए बेशर्मी के साथ धुंआ अपना पंख फैलाए इधर-उधर डोल रहा था।


    वापस होते पड़ोसियों ने उसे तसल्ली दी, 'खुदा का शुक्र मनाओ कि घर जलने से बच गया। आग तो भई सिर्फ किताब के गोदाम में लगी थी।'


    बची किताबों की उम्मीद में राख कुरेदते हुए उसने महसूस किया कि धीरे-धीरे वह भी राख में तब्दील होता जा रहा है।


                                   सम्पर्क: अपर बेनियासोल, पो.आद्रा, जिला पुरुलिया 723121, पश्चिम बंगाल मो.नं. : 9800940477