लघु कथा-दहन किसका -डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी-सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान) जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) लेखन - लघुकथा, पद्य, कविता, गज़ल, गीत, कहानियाँ, लेख


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* जानते हो रावण की भूमिका करने वाला असली जिंदगी में भी रावण ही है, ऐसा कोई अवगुण नहीं जो इसमें नहीं हो।'' रामलीला के अंतिम दिन रावण-वध मंचन के समय पांडाल में एक दर्शक अपने साथ बैठे व्यक्ति से फुसफुसा कर कहने लगा।


    दूसरे दर्शक ने चेहरे पर ऐसी मुद्रा बनाई जैसे यह बात वह पहले से जानता था, वह बिना सिर घुमाए केवल आँखें तिरछी करते हुए बोला, “इसका बाप तो बहुत सीधा था, लेकिन पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की भूल कर बैठा, दूसरी ने दोनों बाप-बेटे को घर से निकाल दिया...''


“इसकी हरकतें ही ऐसी होंगी, शराबी-जुआरी के साथ किसकी निभेगी?''


  ''श्श्श! सामने देखो।'' पास से किसी की आवाज़ सुनकर दोनों चुप हो गए और मंच की तरफ देखने लगे।


    मंच पर विभीषण ने राम के कान में कुछ कहा, औरराम ने तीर चला दिया, जो कि सीधा रावण की नाभि से टकराया और अगले ही क्षण रावण वहीं गिर कर तड़पने लगा, पूरा पांडाल दर्शकों की तालियों से गूंजायमान हो उठा।


    तालियों की तेज आवाज़ सुनकर वहां खड़ा लक्ष्मण की भूमिका निभा रहा कलाकार भावावेश में आ गया और रावण के पास पहुंच कर हँसते हुआ बोला, “देख रावण... माँ सीता और पितातुल्य भ्राता राम को व्याकुल करने पर तेरी दुर्दशा... इस धरती पर अब प्रत्येक वर्ष दुष्कर्म रूपी तेरा पुतला जलाया जाएगा...


    नाटक से अलग यह संवाद सुनकर रावण विचलित हो उठा, वह लेटे-लेटे ही तड़पते हुआ बोला, “सिर्फ मेरा पुतला! उसका क्यों नहीं जिस कुमाता के कारण तेरे पिता मर गए और तुम दोनों को...


    उसकी बात पूरी होने से पहले ही पर्दा सहमते हुए नीचे गिर गया।


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