देवेन्द्र आर्य-जन्म : 1957, गोरखपुर। रेल सेवानिवृत्त गीतों के चार और गज़लों के पांच और नई कविता के दो संग्रह प्रकाशित कवि देवेन्द्र कुमार बंगाली पर दो और आलोचक डा. परमानन्द पर पुस्तक का सम्पादन आलोचना पुस्तक 'शब्द असीमित
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वही लाल लाल मसूड़े
पोपला मुँह अशक्त हाथ-पैर
निरीह निर्भर बूढा भी तो होता है
मगर बूढे की झुर्रियों से प्यार नहीं कर पाता कोई
आदर चाहे जितना कर ले
हमदर्दी और प्यार में फ़र्क होता है
वरना क्यों फसलाया जाता कि माँ-बाप की सेवा करके
पुण्य कमा रहे हैं आप
बच्चे को पाल के पुण्य लाभ करने का कोई श्लोक हो तो
बताइए
सेवा करना प्यार करना नहीं फ़र्ज़ निभाना है
प्यार उत्फुल्ल होता है
फ़र्ज़ गिरा
माँ बाप बच्चे को पालते हैं इसलिए प्यार करते हैं
बिना प्यार किसी को पाला नहीं जा सकता
बच्चे माँ-बाप को पालते नहीं निबाहते हैं
थोड़ा सरस थोड़ा रुख्ख़ा थोड़ा असली थोड़ा दिखावटी
औलादें सिर्फ पार घाट लगती हैं वालदैन को कन्धा दे कर
कंधे और गोद का फ़र्क है बचपन और बुढ़ापा
बच्चे का मन कोरा होता है
बूढे का मन गोंजाया
बच्चा प्यार को सिर्फ प्यार समझता है
बूढ़ा प्यार के पीछे सियासत भी देखता है
ढहती इमारत से कोई प्यार नहीं करता
सिर्फ आह भर सकता है कि एक दिन क्या तो थी वह
वे इतिहास के दिन
चाहे जितने ऐतिहासिक हों
हम इतिहास को याद रख सकते हैं
प्यार नहीं कर सकते
बावजूद इसके कि स्त्रियाँ फोन पर प्यार करते हुए भी
उबलते दूध पर नज़र रखती हैं
सिर्फ कुदरत में ही शाम भी प्यारी लगती है
जिंदगी कुदरत से अलग एक कुदरत है
जिसमें सुबह प्यारी होती है शाम नहीं.
सम्पर्कः 127, आवास विकास कालोनी शाहपुर, गोरखपुर-273006, उत्तर प्रदेश