कविताएं - आईना -देवेन्द्र आर्य

देवेन्द्र आर्य  - जन्म : 1957, गोरखपुर। रेल सेवानिवृत्त गीतों के चार और गज़लों के पांच और नई कविता के दो संग्रह प्रकाशित कवि देवेन्द्र कुमार बंगाली पर दो और आलोचक डा. परमानन्द पर पुस्तक का सम्पादन आलोचना पुस्तक 'शब्द असीमित


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आईना 


यह सबसे बड़ा झूठ है


कि आईना झूठ बोलता ही नहीं


दोनों नंगे थे।


एक ने अपने कपड़े खुद उतारे थे


दुसरे को जबरिया नंगा किया गया था


पहला नंगा इसलिए था कि वह


दूसरे के नंगेपन को भोग सके


आँखों में चमक भेडियों जैसी उ


सका नंगा चेहरा आईने से हाथ मिला रहा था


 


दूसरे की पीठ थी आईने की तरफ


नंगी


शर्मशार चेहरा


और झुकी आँखें आईने से ओझल थीं


आईने के लिए दोनों नंगे थे


एक का चेहरा


दूसरे की पीठ


आईने में नंगापन तो देखा जा सकता था


नंगई नहीं


आईना झूठ बोल रहा था की दोनों नंगे थे


 


                                           सम्पर्कः कविताएं 127, आवास विकास कालोनी शाहपुर, गोरखपुर-273006, उत्तर प्रदेश