नीरज नीर-जन्म तिथि : 14 फरवरी 1973 राँची विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक अनेक राष्ट्रीय पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकशित कई भाषाओं में कविताओं का अनुवाद काव्यसंग्रह ''जंगल में पागल हाथी और ढोल'' प्रकाशित, जिसके लिए प्रथम महेंद्र स्वर्ण साहित्य सम्मान प्राप्त।
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विस्थापन-२
रातें उदास और ठहरी हुई हैं
विषण्ण सुबह
सूरज उगता है
आधा डूबा हुआ
हवाएँ शोक ग्रस्त हैं
बलदेव बेसरा की थकी हुई आँखों में
छाया है अंधेरा
दैत्याकार चिमनियों से निकलता
विषैला काला धुआँ
जहर बनकर घुस रहा है
नथुनों में
पत्तियों पर फैली है
काली धूल
वृक्ष हाँफ रहे हैं
वह भर देना चाहता है
उस बरगद के पेड़ में
अपनी साँसे
जिसे लगाया था
उसके पुरखों में से किसी एक ने
पर वह खुद बेदम है
धान के खेतों में
पसरी हुई है
कोयले की छाई
दावा है चारों तरफ
बिजली की चमकदार रौशनी
फैलाने का
लग रहा है बिजली घर
पर उसके जीवन में फैल रहा है अंधेरा
बरगद की जड़ें ताक रही हैं
आसमान को
पंछी उड़ चुके हैं
किसी दूर देश को
नए ठौर की तलाश में
पर तालाब की मछलियां
नहीं ले पा रही हैं साँसे
वे मर कर उपला गई है
पानी की सतह पर
वह भी चाहता है
पंछियों की तरह चले जाना
लाल माटी से कहीं दूर
जहाँ वह ले सके
छाती भर कर साँस,
जहाँ गीत गाते हुए
उसकी औरतें रोप सके धान,
जहाँ मेड़ों पर घूमते हुए
रोप सके
अपनी आत्मा में
हरियाली की जड़ें
पर मछलियों के पंख नहीं होते
वह साँस भी नहीं ले पा रहा
उसकी आत्मा छटपटा रही है
वह भी तालाब की मछलियों की तरह
मरकर उपला जाएगा
और विस्मृत हो जाएगा
अस्तित्वहीन होकर
मछलियाँ पानी के बाहर
पलायन नहीं कर सकती हैं
अंधेरे में जूझती मछलियों का अंत
निश्चित है
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