नरेन्द्र पुण्डरीक-जन्म : 6 जनवरी 1954, बांदा, ग्राम-कनवारा केन किनारे बसे गांव में समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण कवियों में से। कविता के महत्वपूर्ण आयोजनों में भागीदारी कविता और आलोचना की अनेक पुस्तकें प्रकाशित। वर्तमान में : केदार स्मृति शोध संस्थान बांदा के सचिव, 'माटी' पत्रिका के प्रधान संपादक एवं केदारसम्मान, कृष्ण प्रताप कथा सम्मान, व डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान के संयोजक
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स्त्री जो न दाएं भाग पाई न बाएं
मुझे तुलसी बाबा पर बहुत गुस्सा आता है
पिटने का लाइसेंस उनके व्दारा मिलने के बाद
कितना सहा स्त्री ने,
बाकी तो बचते रहे
कुछ न कुछ दाएं-बाएं होकर
स्त्री जो न दाएं भाग पाई न बाएं
चूंकि उसके स्वतंत्र होने को
उसका बिगड़ना साबित करने में
लगे रहे बाबा तुलसी दास
'जिमि स्वतंत्र होई बिगरै नारी '',
तुलसी बाबा हाथ धोकर पीछे पड़ गए
सो कहां भाग कर जाती स्त्री
हर तरफ से केवरिया औंधा कर
रोकते रहे हवाएं,
शूद्रों को मारने से बचाने के लिए
उठते रहे कम से कम शूद्रों के हाथ
खाकर एक दूसरे के हिस्से की मार
खड़े होते रहे साथ,
लेकिन जब पुरुषों के हाथों से
पीटी जाती रही स्त्री
लात, थप्पड़ और घूसों से
तो बचाने के लिए उसे किसी
स्त्री ने नहीं उठाए अपने हाथ
न खाई कभी उसके हिस्से की मार,
हमेशा एक स्त्री की मार में
साझी बनी रही एक स्त्री
एक के लिए दूसरी
एक स्त्री फांसी चढ़ती रही
दूसरी लगाती रही उसमें गांठ
सो कैसे न बिगड़ता स्त्री का अपना संसार।
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