कविता - स्पर्शती संवेदना - आरती तिवारी

आरती तिवारी - आरती तिवारी जन्म : 8 जनवरी जन्म स्थान : पचमढ़ी शिक्षा : बी.एस.सी.एम.ए.बीएड प्रकाशन : देश के सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ कहानी, आलेख, संस्मरण, यात्रा वृत्तान्त एवं अनुदित कविताएँ निरन्तर प्रकाशित। प्रसारण : आकाशवाणी इंदौर से एकल काव्य पाठ कहानी पाठ एवं काव्य गोष्ठियां वार्ताएं प्रसारित सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन


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स्पर्शती संवेदना


 


तुम भी वहाँ नहीं हो


मैं भी नहीं हूँ


पर वहाँ है आज भी वे आमने सामने की चट्टानें


और उनके बीच बहता झरना


कौन मानेगा कि हमने कभी


एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा


झरने की कलकल की ध्वनि ही


एक सेतु थी


या तुम्हारे द्वारा फेंके गए वे कंकड़


जो डाकिये तो थे


पर संदेशे पहुँचाने में नाकाम रहे


और कसमसाते रहे रेत हो जाने तलक


में बैठती थी जिस चट्टान पर


उसके नीचे पड़े उस छोटे से गोल पत्थर को


जो मेरी जूतियों के दबाव और उस पर


घिस कर एक नाम का पहला अक्षर उकेरने से


इतना घिसाया इतना घिसाया कि


कराह उठा


पर...वो अक्षर उभर पाता उससे पहले


तुम जा चुके थे


बहुत दूर कहीं


सामने वाली चट्टान सूनी हुई


तुम्हारे स्पर्श को हवाओं के साथ धकेलती भेजती थी इधर


पर...


वो स्पर्श इधर पहुँचते उससे पहले


एक हवा के झोंके ने मेरी बाँह गह


मुझे एक मैदान में उतार दिया था


कई सालों बाद पहुंची ये खबर


तुम मेरे लिए संचित सुखों को


कमा कर लौटे थे जब


तुमने पार किया झरना


तलाशे अपने डाकिये जो चूर चूर हुए


तलहटी में से झाँकते थे


तुम आए उस चट्टान तक


जिस पर मैं बैठती थी, तुमने धोया उसे


अपनी आँखों के पानी से


तुमने तलाशा मेरा स्पर्श


पर....


नहीं था वो, कहीं नहीं था


बाद में मैंने सुना तुमने तलाश लिया वो गोल छोटा पत्थर


उँगलियों से स्पर्शा उस पर उभरा वो आधा अधूरा तुम्हारे नाम


का पहला अक्षर


मुझे जोर जोर से हिचकियाँ आ रही हैं


मैं बावली हुई दौड़ रही हूँ मैदानों में


टूट रहा है मेरा अंग अंग


क्या उस गोल छोटे पत्थर को


सीने से लगा लिया है तुमने..


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