कविता-सरयू हमारे लिए एक नदी थी तक - नरेन्द्र पुण्डरीक

नरेन्द्र पुण्डरीक-जन्म : 6 जनवरी 1954, बांदा, ग्राम-कनवारा केन किनारे बसे गांव में समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण कवियों में से। कविता के महत्वपूर्ण आयोजनों में भागीदारी कविता और आलोचना की अनेक पुस्तकें प्रकाशित। वर्तमान में : केदार स्मृति शोध संस्थान बांदा के सचिव, 'माटी' पत्रिका के प्रधान संपादक एवं केदारसम्मान, कृष्ण प्रताप कथा सम्मान, व डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान के संयोजक


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सरयू हमारे लिए एक नदी थी


 


हमें नहीं मालूम कि


राम कब अयोध्या में आए ओर


कब चले गए


न हमें राम के आने से


कोई लेना देना था न जाने से,


हां सरयू जरुर हमारे लिए एक नदी थी


जो हमारे सरोकारों से जुड़ी थी


और हमें अपने जैसी लगती थी क्योंकि हम


सरयू का ही पानी पीते थे,


राम जब घर कलह से उब कर


भाइयों सहित सरयू में डूबने आए तो


राम से अधिक हमें सरयू की चिन्ता हुई थी,


हजारों साल में जब


इस दुनिया की शक्ल बदल गई है


तो निश्चय ही राम की शक्ल बदल गई होगी।


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