कविता -प्रेम-१, प्रेम-२ - रोहित ठाकुर

रोहित ठाकुर- जन्म : 6 दिसम्बर 1978 शैक्षणिक योग्यता : परा-स्नातक राजनीति विज्ञान विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित, विभिन्न कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ वृत्ति : सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण रूचि : हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन


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प्रेम-१


 


मैंने तुम्हें उस समय भी प्रेम किया


जब स्थगित थी सारी दुनिया भर की बातें


मैंने तुम्हें


हर रोज प्रेम किया


जिस दिन गिलहरी को


बेदखल कर दिया गया पेड़ से


मैं गिलहरी के संताप के बीच


तुमसे प्रेम करता रहा


जब एक औरत ने अपने अकेलेपन से ऊब कर


बादलों के लिए स्वेटर बुना


उस दिन भी मैं तुम्हारे प्रेम में था


जब इस सदी के सारे प्रेम पत्र


किसी ने रख दिया था ज्वालामुखी के मुहाने पर


उस दिन भी मैंने तुम्हें प्रेम किया


रेलगाड़ियों में यात्रा करते हुए


कई शहरों को धोखा दे कर निकलते हुए


मैंने तुम्हें प्रेम किया बहुत ज्यादा


मैंने खुद से कई बार कहा


यह शहर जितना प्रेम में है नदी के


मैंने तुम्हें प्रेम किया उतना ही।


प्रेम-२


उन दोनों के बीच प्रेम था


पर वह प्रत्यक्ष नहीं था


उन दोनों ने एक दूसरे को कई साल फूल भेजे


एक-दूसरे के लिए कई नाम रचे


वे शहर बदलते रहे और एक दूसरे को याद करते रहे


वे कई-कई बार अनायास चलते हुए पीछे मुड़कर देखते थे


उन्होंने कई बार गलियों में झांक कर देखा होगा


फिर कई सदियाँ बीतीं


वे दोनों पर्वत बने


पिछली सदी में वे बारिश बने


इतना मुझे यकीन है


इस सदी में वे ओस बने


फिर किसी सफेद फूल पर गिरते रहे।


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