नंदा पाण्डेय - स्वतंत्र लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्राकाशन।
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प्रतीक्षा
न कोई वक्त
न कोई मुहूर्त
तब
जब, प्रतीक्षा में तुम्हारी
मेरी भावना के, अनुरक्ति के और
मेरे अभिसार के
सौ-सौ धवल कमल
रोज खिला करते थे
हाथों में कुंकुम रंजित पुष्प और
होंठों पर
स्वस्ति वाक्य होते थे
सिर्फ तुम्हारे लिए
खुद को खो देने के लिए
इतना ही काफी था....
जानती हूं
जो बीत चुका
जो रीत चुका
वो कल था
आज तुम कहीं नहीं हो
तो, फिर आज
प्रतीक्षा किसकी है...
कहीं उस अहसास का तो नहीं
जो सिर्फ तुम्हारा हाथ छूकर
चिर जागृत रहता था हरदम या
बेकाबू भंवर में डूब रहे
अन्त:करण के संघर्ष पर
काबू पाने की प्रतीक्षा है..
या प्रतीक्षा है....
स्पंदित हृदय में पलाश के दहकने
और आंखों की स्याह परत में छुपे
लरजते नीर के पत्थर बन जाने की है....
या फिर प्रतीक्षा है.....
यात्रा और प्रस्थान के
अछोर सम्मोहन में
विसर्जित उस लय की
जिसमें शाम की सुरमई चादर में
लिपटी रात की रानी
गुमसुम बिलखती रहती है
सच कहूँ, तो
प्रतीक्षा आज भी है
उस लहर के आने की
जो निश्छल, निमग्न मेरे मन को
बहा ले जाए तुम तक या
तुम्हें ही लौटा लाए मुझमें
और तुम रुके रहना
मेरी संवेदनाओं के सुन्न हो जाने तक।
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