विनोद 'निर्भय' - जन्म : 3 अप्रैल 1989 शिक्षा: एम. ए.-राजनीति विज्ञान, हिंदी साहित्य दो काव्य संग्रहों में संकलित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। सम्प्रति : शिक्षण कार्य।
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नई कलम
गजल-१
दिखाने को भले वो ज़ख्म पे मरहम लगाता है।
मुझे लाचार जब देखे, नहीं फूला समाता है।।
गमों से जूझता इंसान यूँ जाता निखर अक्सर,
ज़माने को वही इक दिन नई राहें दिखाता है।
समझती क्यूँ नहीं कोई बदी इतनी हकीकत को,
खुदा ही हर किसी को ज़िन्दगी देता, मिटाता है।।
वहाँ जिन्दादिली से जन्दिगी जीना सरल है क्या,
जहाँ हर बात पर हम पे कोई तोहमत लगाता है।
फ़रेबी-जालसाजों की कुदर होती यहाँ अब तो,
वहीं बेदाम सच हर इक कदम पर मात खाता है।।
कलम है हल, जमी कागज, लहू से सींचकर 'निर्भय'।
सुहाने गीत - ग़ज़लों की नई फसलें उगाता है।।
गजल-२
किसी संघर्ष में पल-पल हमारे पास होता है।
वही तो ज़िन्दगी में शख्स अपना खास होता है।।
भले ही खुन के रिश्तों की होती अहमियत लेकिन,
वही सम्बन्ध सच्चे हैं जहाँ एहसास होता है।
जहाँ भी मंथरा-शकुनी जमाकर पाँव रख देते,
वहाँ तो राम जैसों का सदा वनवास होता है।।
हज़ारों जंग ऐसी जीतने से हारना अच्छा,
विजय के बाद जिसमें क्षोभ का आभास होता है।
कहा था कृष्ण ने, अर्जुन ! यही है सार जीवन का,
सभी निष्काम कर्मों में खुशी का वास होता है।।
सम्पर्कः ग्राम-जूड़ापुर, पो.-कुसमौल, जनपद-गोरखपुर-273401, उत्तर प्रदेश, मो. नं.: 9415410271