कविता -क्रांति का बिगुल - केशव शरण

केशव शरण - जन्म : 23 अगस्त 1960 चार कविता संग्रह एक हाइकू संग्रह और एक गजल संग्रह प्रकाशित। सम्प्रति : बैंक में सेवा


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क्रांति का बिगुल


 


सरकार


बताती है


उसने इतना विकास किया


तो बताने दो,


विश्वास नहीं


समीक्षा करो


समीक्षा के बाद


जितना विकास दिखाई दे


उसे भी विकास मत मानो


उसमें से घटाओ


पर्यावरण का विनाश


जो विकास के चलते


सरकार ने किया


फिर जितना बचता है विकास


वही मानो


उतना ही विकास जानो


सरकार ने किया


विकास शून्य के नीचे गया


तो


क्रांति का बिगुल बजा दो!


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