कहानी - बहुत अच्छे लोग - सपना सिंह

जन्म तिथि : 21 जून 1969, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश शिक्षा : एम.ए. (इतिहास, हिन्दी) बी.एड. प्रकाशित कृतियाँ: धर्मयुद्ध, साप्ताहिक हिन्दुस्तान के किशोर कालमों से लेखन की शुरूआत, पहली कहानी हंस में प्रकाशित... लम्बे गैप के बाद पुन: लेखन की शुरूआत, अबतक-हंस, कथादेश, परिकथा, कथाक्रम, सखी(जागरण) आदि में कहानियां प्रकाशित। एक उपन्यास और दो कहानी संग्रह प्रकाशित।


                                                              ------------------------


दीदीका घर बहुत खुब भरा हुआ था, दोनों चाची लोग गाँव में आ गई थीं। नीलू के दोनों छोटे बच्चे, भाई की बीवी उसके बच्चे, दीदी की दोनो सहेलियां जो दिल्ली में थी पर दो दिन के लिए दीदी के पास गुड़गांव आ गई थीं। गुड़गांव में इस पॉश सोसायटी में ग्राउंडफ्लोर पर श्री.बी.एच.के. अपार्टमेन्ट कोई छोटा घर नहीं कहा जा सकता पर अब इतने सारे लोगों के रहते घर भरा भरा सा ही लग रहा... शुक्र था कि सब मायके पक्ष वाले ही थे। सिर्फ दीदी की बड़ी जिठानी ही थी! पर वो भी हम लोगो में ही मिल गई थीं।


    दीदी कि मझली जिठानी पूनम दीदी का सामंजस्य हर कहीं बैठता नहीं था। दादा कमिश्नर थे, और स्वयं वो आई.ए.एस. के खानदान की। कहते हैं उनके परिवार में १२ आई.ए.एस. हैं। उनके पापा,उनके भाई भाभी, बहनें सभी आई.ए.एस. सिर्फ पूनम दीदी ही रह गई थीं आई.ए.एस. बनने से। उनके कोई बच्चा भी नहीं था। फ्रस्टेशन में खाकर मोटी इतनी कि उठना-बैठना मुहाल, और ऊपर से गजब की मूडी थीं। जब कभी दीदी के पास जाना होता, एक दिन पूनम दीदी के पास जाने का प्रोग्राम जरूर बनता। वो दिन खूब भारी होकर बीतता। उनका एरिस्ट्रोक्रेट रख रखाव और एलीट व्यवहार। हम सब पर एक अव्यक्त तनाव पसरा रहता। हम अपने उठते, बैठते, बतियाते, चाय नाश्ता खाने पीने में अतिरिक्त सावधानी बरतते! यहां तक कि सांस लेने और थूक गटकने में भी कांशस रहते। हलांकि पूनम दीदी हमसे हमेशा बड़े प्यार से मिलतींहम कम्फर्टेबल फील करें उसका भी ख्याल रखतीं। यह हमारी अपनी ही असमर्थता थी कि हम कभी उनसे खुल नहीं पाए।


    दीदी की इकलौती ननद भी एक नकचढ़ी थीं। उनके पतिदेव आई.जी. थे। उनकी पटरी छोटे भाई से ज्यादा बड़े दादा से थी... सो वो भी वहीं रुकी थींदोनों ननद भाभी दिल्ली से दोपहर तक आतीं और देर रात वापस चली जातीं।


    दीदी ने अखण्ड रामायण का पाठ रखवाया था। उनका बड़ा बेटा बाबू आई.आई.टी. कानपुर में सलेक्ट हो गया था। इस खुशी के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करने का यह तरीका सबको पसंद आया था.... इसी बहाने एक थोड़ा सा फैमली गेट टुगेदर हो गया था।


    सबसे मिल ली थी पर मुझे सबसे ज्यादा इंतजार था लवि का। बैठकी वाले दिन वो नहीं आ पाई थी... फोन करके दीदी से माफी मांगी थी उसने। मामी कुछ फॉरनर क्लाइंट हैं। उन्हें इन्टरटेन करना है...मैं कल सुबह ही आ जाऊंगी।


    'कोई बात नहीं बच्चे....' दीदी की आवाज थी... मैं भी लवि से मिलने को बेताब थी! तीन साल पहले मिली थी उससे... इतनी प्यारी सी लड़की और ऐसी खराब किस्मत।


    दीदी की ननद की बेटी थी लवि ...... सिर्फ सत्रह की उम्र में उसने लव मैरिज कर ली थी... उसे इतना तो समझाया था सबने पर वह तो अड़ी थी सुमित से शादी करने को...। वैसे सुमित में कोई कमी भी नहीं थी। बड़ी कंपनी में इंजीनियर था। अच्छी सैलरी.... लम्बा, खूबसूरत जवान! माँ और छोटा भाई....सिर्फ इत्ता सा परिवार पर वीना दीदी को वह कहीं से भी अपने स्तर का नहीं लगा था.... पर बेटी जिद के आगे लाचार थीं! विवाह हो गया था। लवि खूब खुश थी अपने प्यार को पाकर। सुमित और उसका परिवार बेहद सुसंस्कृत और समझदार था,माँ को तो जैसे लवि के रूप मेंएक बेटी मिल गई थी। साल भर में ही लवि की गोद में गुड़िया आ गई। खुशियाँ मानो दो गुनी हो गईं.... और जल्द ही उनको नजर भी लग गई। बेटी डेढ़ महीने की थी... जब अचानक एक्सीडेंट में सुमित चल बसा। विधवा माँ पर तो वज्रपात ही हो गया, जवान बेटे का दुःख मनाए या खिलंदड़ी बहू के सुहाग लुटने का मातम मनाए या दुधमुंही बच्ची के सिर से पिता का साया उठ जाने पर हाय-हाय करें.... अपने आंसू उस औरत ने आंखों के पीछे ढकेल दिए, सिसकियोंको कंठ में गला घोट दिया.... और लवि को संभालने में जुट गई। लवि को उन्होंने ऐसे सीने से चिपका लिया मानो वह उनके दिवंगत बेटे की थाती हो.... वीना दीदी और जीजाजी अपनी इकलौती बेटी के इस दुर्भाग्य से शॉक्ड हो गए थे। छोटा भाई अमित अपने दोस्त सरीखे बड़े भाई के जाने का दु:ख भी नहीं मना पाया पूरे तौर पर...। काम क्रिया निपटाने के बाद उसे सुमित के कागज पत्तरों को संभालना निपटाना पड़ा। लवि न ही इतनी शिक्षित थी कि सुमित की कंपनी उसे जॉब दे पाती न ही सुमित की नौकरी ही इतनी ज्यादा दिन की थी कि उसका पी.एफ., ग्रैच्युटी वगैरह.... की राशि बहुत होती, फिर भी, सुमित का सारा पैसा लवि के नाम कराकर अमित ने संतोष अनुभव किया।


    वीना दीदी और जीजाजी लवि को एक पल भी वहां नहीं रहने देना चाहते थे। क्रिया कर्म के दूसरे दिन ही लवि और गुड़िया को अपने साथ ले आए। लवि की सासू माँ ने सिर्फ इतना ही कहा 'बहनजी यह घर लवि का भी है..... हमारा दु:ख साझा है, हम मिलकर इस दुःख को सहेंगेपर वीना दीदी ने एक न सुनी बल्कि शायद उन्होंने लवि की सास को कुछ कड़े शब्द भी कहे और लवि की दूसरी शादी करवा दूंगी... यहां सड़ने को नहीं छोडूगी... अभी हम लोग हैं उसकी फिक्र करने को.... ऐसे कुछ शब्द कहे थे। बेचारी दु:खी माँ ने प्रत्युत्तर में सिर्फ इतना कहा था...लवि के भले के लिए आपलोग जो भी करेंगे उसमें मेरी पूरी सहमति है। वीना दीदी ने मुंह बिचकाया था और लवि और गुड़िया के साथ, लवि के शादी में दिए सारे जेवर, उसकी दामी साड़ियां, सुमित के सारे पेपर सब समेट लाई थीं। जीजाजी ने दबे स्वर में आपत्ति भी की थी, यह सब करने की क्या जरूरत है-ये लोग कोई लवि के दुश्मन तो नहीं है पर वीना दीदी भी क्या करतीं, बेटे के मरते ही बहू को दुश्मन समझने वाले बहुतेरे ससुराल वालों के किस्से देखे, सुने थे उन्होंने। अपनी इकलौती बेटी को वह इस जहनुम में नहीं छोड़ सकती थीं। फिर था भी क्या वहां। न धन-दौलत न जमीन जायजाद केवल लड़का भर था..... वह भी नहीं रहा। उन्हें तो यों भी लवि की ससुराल शुरू से नहीं पसंद थी। क्या लवि के लिए उन्होंने ऐसे घर-वर की कामना ही की थीअरे इकलौती बेटी थी वो, खूबसूरत कॉन्वेंट शिक्षिता... आई.ए.एस. से कम जामाता उतारने का सोचा भी नहीं था उन्होंने.... पर विधाता की सशक्त लेखनी के आगे किसका बस चला है।


    लवि आ तो गई मम्मी के साथ पर जल्द ही उसे मम्मी के व्यवहार से अपनी गलती समझ में आ गई। वीना दीदी... हर किसी के सामने लवि के दुर्भाग्य की कहानी लेकर बैठ जातीं और कभी प्रत्यक्ष और कभी अप्रत्यक्ष रूप से इस सबका जिम्मेदार लवि को ठहराती... 'लवि की उम्र की लड़कियां पढ़ रही हैं कैरियर बना रही हैं और इस स्टूपिड ने लव मैरिज करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली... उस पर से बच्चा भी हो गया...।' उनके हिसाब से लवि की लाइफ बिल्कुल खराब हो गई थीअब कैसे भी करके इसकी शादी हो जाए...तो गंगा नहाएं...।'


  आखिरकार पी.सी.एस. अधिकारी डॉ.ओमप्रकाश से बात बनती दिख रही थी। ४५ वर्षीय प्रकाश विधुर थे। पत्नी का दो वर्ष पहले रोड एक्सीडेंट में देहान्त हो गया था। दो बच्चे थे १० और १५ वर्ष के.वे लवि से विवाह को राजी थे पर गुड़िया को लेकर दुविधा में थे। वीना दीदी ने उनकी इस दुविधा का निराकरण यह कहकर कर दिया कि गुड़िया को वो रख लेंगी। पर लवि कैसे भी तैयार नहीं थी इस रिश्ते के लिए...महज १८ वर्ष की उम्र थी उसकी। ४५ वर्ष के प्रौढ़ व्यक्ति से विवाह किसलिए... क्या वह इतनी भार ही गई हैअपने ही माता-पिता के लिए! फिर सुमित की जगह और किसी को रख पाएगी? और सुमित की निशानी गुड़िया... उससे भी दूर करने की साजिश। उसे इस जंजाल से निकलने का एक ही रास्ता नजर आया और उसने सास को फोन लगा दिया। अगले ही दिन सास अमित के साथ आ गई.... वीना दीदी और जीजाजी दोनों हतप्रभ रह गए- '' अरे आप अचानक?


    मैने बुलाया है इन्हें.... लवि ने स्पष्ट किया था, “मुझेअपने घर जाना है....


    ''क्या! पागल हो गई हो क्या.... जरूर इन लोगों ने बहकाया है तुम्हें....''


    “नहीं मम्मी मुझे किसी ने नहीं बहकाया बस्स.... मुझे जाना है....'' फिर वीना दीदी और जीजाजी को लाख कहने पर भी लवि रुकी नहीं... जिद्दी तो वह थी ही।


    सास ने उसे और गुड़िया को अपने बेटे की थाती समझ कर छाती से लगा लिया था...


    कुछ दिन बाद सास ने लवि को अपने पास बुलाकर उसकी दूसरी शादी की बात छेड़ दी थी... बेटा तुम्हारे सामने पूरी जिन्दगी पड़ी है...। तुम्हारे पापा-मम्मी से मैं भी सहमत हूँ.... तुम्हें फिर से अपने जीवन को संवारने का पूरा हक है।


    “माँ आप भी वही बातें लेकर बैठ गई आप पर भी भार हो गई...।''


    “नहीं बेटा...तुम और गुड़िया इस घर की रौनक हो.... और इस रौनक को मैं अपने ही घर में रखना चाहती हूँ....तुम अमित से शादी कर लो...मैने उससे बात कर ली है.... उसे कोई आपत्ति नहीं है....''


    “क्या कह रही हैं आप...'' लवि को लगा उसने करंट छू लिया है.... एकाएक वह बेचारगी में रो पड़ी, “माँ प्लीज दुबारा कभी यह बात मत कहिएगा... ऐसा कभी नहीं हो सकता''


    उसका रोना देख फिर सास ने इस संबंध में कुछ नहीं कहा लेकिन लवि सारा जीवन ऐसी कैसी गुजारेगी.... यह चिन्ता उन्हें चैन नहीं लेने देती थी। आखिर उन्हें लवि के सामने दूसरा प्रस्ताव रखा... ठीक है तुम्हे शादी नहीं करनी...लेकिन यूं घर में बैठे रोते रहने से तो जीवन पार नहीं लगेगा। तुम दिल्ली जाकर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करो। यहां गुड़िया को मैं सभालेंगी। अमित भी वहीं है... तुम्हें सहारा रहेगा...।'' लवि ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया था। गुड़िया को मां के पास छोड़कर वह निश्चित होकर दिल्ली चली गई। मां बीचबीच में गुड़िया को लेकर आती रहतीं। उस दौरान वो हॉस्टल छोड़कर अमित के फ्लैट में रहने आ जाती।


    गुड़िया, वो, मां और अमित यही छोटा सा परिवार। अमित को भी उन दिनों घर जैसा लगने लगता... उसकी अभी शादी नहीं हुई थी, उसे मां की बात याद थी। लवि को वह पसंद करता था। गुड़िया को पिता का प्यार देना चाहता था... पर लवि की नाराजगी से उसे डर लगता था। मां ने उसे समझाया था .... तू बस्स निस्वार्थ भाव से लवि का ख्याल रख। यहां वह अकेली रहती है, गुड़िया भी उससे दूर है... फिर सुमित की यादें उसे चैन न लेने देती होंगी। अभी उसे पति नहीं दोस्त की जरूरत है... उसका ख्याल रखो दोस्त बनकर। अमित यही कर रहा था ... धीरे-धीरे वह लवि के करीब पहुंच रहा था.... लवि को भी उसका साथ अच्छा लगने लगा था.... उसके सान्निध्य में उसे सुरक्षा महसूस होती.... कैसी भी प्रॉबलम हो सुमित चुटकियों में हल कर देता.... फिर भी लवि का दिल उसे सुमित की जगह देने को गवारा नहीं करता। वक्त धीरे-धीरे गुजर रहा था...। लवि ने कोर्स खत्म कर एक स्थापित फैशन डिजाइनर के पास कुछ दिन काम किया फिर अपना स्टोर खोल लिया....। इस बार जब वह और अमित पटना गए तो लवि ने ही अमित की शादी की बात छेड़ी। आखिर अमित शादी कब करेगा...अगर उसकी वजह से अब तक रुका है तो वह भी अब सेटिल हो गई है....गुड़िया की जिम्मेदारी निभा। सकती है।


    'पर उसने तो साफ कर दिया है उसे शादी नहीं करनी..''


    क्यों माँ....?'' लवि ने हैरानी से पूछा था


    “तुम जानती हो .... वह तुम्हे पंसद करता है...तुम और गुड़िया यही उसकी जिंदगी हैं.... “पर माँ....'' लवि ने महसूस किया कि उसके प्रतिवाद में पहले जैसा जोर नहीं रह गया था... माँ समझ गई थीं बर्फ पिघल रही है।


    सुमित के स्वर्गवास के पूरे सोलह बरस बाद अमित और लवि का विवाह हुआ था। मैं लवि के बारे में ही सोच रही थी कि अचानक दीदी की आवाज से चौंकी थी.... लवि आ गई... भी हड़बड़ा कर द्वार की ओर भागी ... लवि ही थी साथ में उसकी बहन सी लगती उससे भी लम्बी गुड़िया और गुड़िया की गोद में आठ महीने का आशु, अमित और लवि का बेटा... लवि के पीछे पीछे उसकी सास और अमित भी थे। दीदी बड़े प्यार से उन लोगों का स्वागत कर रही थी और मैं चमकृत सी खड़ी सोच रही थी... दुनिया में अच्छे लोग अभी भी हैं... अच्छे नहीं, शायद बहुत अच्छे लोग हैं ये लोग!


                                                                                            सम्पर्कः द्वारा प्रो. संजय सिंह परिहार, म.न. 10/1456,                                                         आलाप के बगल में, अरूण नगर रीवा-486001, मध्य प्रदेश मो.नं. : 9425833407