रिपोर्ट - नीलांबर द्वारा लिटरेरिया २०१८ का आयोजन

कोलकाता की साहित्यिक संस्था नीलांबर द्वारा ३० नवंबर से २ दिसंबर तक तीन दिवसीय साहित्य उत्सव लिटरेरिया २०१८ का आयोजन किया गया। आज जबकि बाजारवादी शक्तियां साहित्यिक आयोजनों के नाम पर असाहित्यिक लोगों के जमावड़े का मंच तैयार कर रही है, नीलांबर ने एक सार्थक विकल्प प्रस्तुत करते हुए साहित्य और अन्य कलाओं के आपसी संवाद के लिए बेहतर मंच उपलब्ध कराया है। नीलांबर सर्वदा ही हिंदी साहित्य में नए प्रयोग एवं आधुनिक तकनीक के समावेश से साहित्य को आम जन तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत रहा है। यह आयोजन इसी कड़ी का एक हिस्सा था। इसमें देशभर से करीब ३० लेखकों और ५० कलाकारों ने हिस्सेदारी की। पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सांस्कृतिक केन्द्र रवीन्द्र सदन परिसर में स्थित सुप्रसिद्ध नंदन सभागार में पहली बार कोई हिन्दी साहित्य से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किया गया। साहित्य के इस महापर्व का उद्घाटन मशहूर कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने किया। मुख्य अतिथियों में मृत्युंजय कुमार सिंह ,श्री रवींद्र शंकरन, तुषार धवल सिंह एवं पी.सी सेन जैसे गणमान्य लोग उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र का आरंभ प्रतिभाशाली बांसुरी वादक अनिर्बन राय के बांसुरी वादन से हुआ। बाँसुरी की धुनों ने हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर दियाकार्यक्रम में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए अध्यक्ष यतीश कुमार ने कहा कि नीलांबर का उद्देश्य सिर्फ कार्यक्रम को आयोजित करना ही नही है बल्कि इसे आम जनता तक ले जाना है। इस बार लिटरेरिया २०१८ का केंद्रीय विषय था स्त्री। कार्यक्रम के दो सत्रों में क्रमशः ‘स्त्री विमर्श : उपलब्धियां, भटकाव और संभावनाएं' एवं 'स्त्री विमर्श की संभावनाएं' विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। सेमिनार का आरंभ एक वृत्त फिल्म से किया गया जिसे नीलांबर के सदस्यों ने बनाया था। प्रथम आलोचना सत्र अब्दुल बिस्मिल्लाह की अध्यक्षता में आयोजित हुई, जिसमें कात्यायनी, प्रियंकर पालीवाल, राजश्री शुक्ला एवं दीबा नियाजी मुख्य वक्ता थी। कात्यायनी ने जहां कविताओं में स्त्री विमर्श को तलाशा, शोधकर्ता दीबा नियाज़ी धर्म को इसके खिलाफ साजिश करते हुए देखती है और राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी को भी इससे जोड़ती हैं। वहीं प्रोफेसर राजश्री शुक्ला महिलाओं और लड़कियों के आगे बढ़ने के छोटे-छोटे संघर्षों को भी स्त्री विमर्श की सफलता के रूप में देख रही हैं। कुल मिलाकर स्त्री विमर्श का यह सत्र बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक रहा। प्रियंकर पालीवाल ने भी स्त्री विमर्श को आगे बढ़ाते हुए उनके आत्मविश्वास पर चर्चा की। इस सत्र की संचालिका अल्पना नायक ने भी महिलाओं के द्वारा छोटी-छोटी परंपराओं को निभाते जाने को भी स्त्री विमर्श से जोड़सेमिनार के दूसरे सत्र की चर्चा का प्रारंभ वागर्थ के संपादक एवं प्रसिद्ध आलोचक डॉ शंभुनाथ की अध्यक्षता में हुई। सबसे पहले शोधकर्ता रजनी पांडेय ने इतिहास में स्त्रियों की जगह को तलाशा वहीं गरिमा श्रीवास्तव ने वैश्विक स्तर पर स्त्रियों के साथ हो रहे यौन अत्याचारों पर प्रकाश डालते हुए स्त्री विमर्श के दायरे को बढ़ाने की बात कही। उन्होंने कहा कि स्त्री विमर्श से पहले स्त्री का मनुष्य के रूप में स्थापित होना जरूरी हैयह समाज स्त्री को मनुष्य समझे, इसके लिए प्रयासरत होना होगा। लेखिका अलका सरावगी ने भी वैश्विक स्तर पर स्त्री विमर्श पर चर्चा की। जहाँ उन्होंने बेल्जियम जैसे प्रगतिशील देश का जिक्र करते हुए कहा कि वहाँ की महिलाएं आज भी घरेलू हिंसा का शिकार हैं। वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया ने बच्चियों पर यौन हिंसा पर अपनी गहरी चिंता जाहिर की। डॉ शंभुनाथ ने स्त्री स्वतंत्रता पर बेबाकी से विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महिलाओं को तय करना होगा कि स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है या सुरक्षा? उन्होंने स्त्रियों के शोषण के लिए पूंजीवाद की तीव्र भत्र्सना की।


    इसके पश्चात् गरिमा श्रीवास्तव की पुस्तक ‘देह ही देश' पर पर आयोजित परिचर्चा में अलका सरावगी, वेद रमण एवं इतु सिंह ने हिस्सा लिया। दिन के अंत में एक शाम गज़ल की' का आयोजन किया गया जिसमें अंजुम वारसी, मुश्ताक अंजुम, शहनाज रहमत, फिरोज मिर्जा, विनोद प्रकाश गुप्ता, अहमद मिराज, सेराज खान बातिश एवं शैलेश गुप्ता ने ग़ज़ल पाठ किया। संचालन रौनक अफरोज़ ने किया। इसी दिन ममता पांडेय द्वारा निर्देशित मोनोएक्ट ‘रज्जो' का प्रदर्शन किया गया जिसमें दीपक ठाकुर ने अभिनय किया। इसके अलावा चर्चित चित्रकार कुंवर रवींद्र के कविता पोस्टर की प्रदर्शनी भी लगाई गई।


      लिटरेरिया, २०१८ के दूसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत संवाद सत्र के साथ किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि ऋतुराज ने की। कविता में राजनीतिक मुहावरे और अनुभव का सवाल विषय पर अष्टभुजा शुक्ल, गीत चतुर्वेदी और ऋतुराज ने बड़ी बेबाकी से अपने विचार रखे। गीत चतुर्वेदी ने कविताओं में राजनीतिक मुहावरों को निजी व्यक्तित्व से प्रभावित होने की बात कही। चर्चा के दौरान कवि ऋतुराज ने आज के राजनीतिक परिदृश्य में कवियों के सहभागिता की कमी पर प्रकाश डाला। अष्टभुजा शुक्ल ने कविताओं में विदेशी कवियों और कविताओं के दखल पर भी बातें की और कवियों को अपने देश में कविता की संभावनाओं को तलाशने की बात कही। दर्शक दीर्घा से कई प्रश्न आए जिसका उत्तर इन कवियों ने बड़े धैर्य के साथ दिया। ममता पांडेय ने संवाद सत्रका सफलतापूर्वक संचालन किया। तत्पश्चात् इस दिन के मुख्य आकर्षण कविता कुंभ का आरंभ हुआ जिसमें देश भर के प्रतिष्ठित हिंदी एवं बांग्ला के कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया ।


     संचालन मंटू कुमार साव ने किया। शाम के अंतिम सत्र में ‘एक साँझ कहानी की' कार्यक्रम के अंतर्गत ऋतेश पांडेय द्वारा निर्देशित मन्नू भंडारी की कहानी ‘अनथाही गहराइयाँ' पर आधारित फिल्म प्रदर्शन के साथ कहानी पाठ किया गया। मन्नू भंडारी की पुत्री रचना यादव ने इस कहानी का पाठ किया। इस फिल्म में मुख्य किरदार प्रसिद्ध रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला, स्मिता गोयल, विजय शर्मा, ऋतु तिवारी एवं आनंद गुप्ता निभा रहे थे। इस सत्र का संचालन कल्पना झा ने किया।


    लिटरेरिया के तीसरे दिन संवाद के दो सत्र रखे गए। इस दिन के पहले संवाद सत्र का विषय था 'आज के साहित्य में स्त्री और आज का स्त्री साहित्य'। इस सत्र में मुख्य वक्ता थे संतोष चतुर्वेदी, लवली गोस्वामी, अनुराधा सिंह और श्रद्धांजलि सिंहसंतोष चतुर्वेदी ने कहा कि स्त्रियों की सबसे बड़ी त्रासदी यह हैकि उन्हें अपने शोषक के साथ ही चौबीसों घंटे रहना पड़ता हैउनका जीवन प्रवासी का जीवन होता हैउनकी स्थिति दलितों में भी दलित के जैसी होती हैअराधना सिंह ने कहा कि आज की स्त्री के प्रति समाज का बर्ताव दोयम दर्जे का है। लेकिन साहित्य में उसे अतिशय करूणा या महात्म्य के साथ लिखा जा रहा है। यह स्त्री के मौजूदा संघर्ष का गलत दस्तावेजीकरण । श्रद्धांजलि सिंह ने कहा कि वर्तमान स्त्री न केवल स्त्री के अस्तित्व संघर्ष को अधिक गंभीर धरातल पर उठा रही है, यह अन्य हाशिए के विमर्श से जुड़कर मनुष्यता के विमर्श की तरफ बढ़ रही है। लवली गोस्वामी ने साहित्य में स्त्री विमर्श से जुड़े कई मुद्दे उठाए ।इस सत्र का संचालन निशांत ने किया। इस दिन के दूसरे संवाद सत्र का विषय था 'आज की आलोचना के प्रतिमान'। इसमें वक्ता थे नरेंद्र जैन, डॉ. शंभुनाथ ,डॉ. राजेंद्र कुमार और वेदरमण। राजेंद्र कुमार ने कहा कि आलोचना रचना का समानांतर रुप है। महत्वपूर्ण है एक दूसरे से बात करना न कि एक दूसरे पर बात करना। आलोचना में व्यापक समयबोध होना चाहिए न कि केवल समकालीनता बोधनरेन्द्र जैन ने कहा कि जीवन में कविता का अंश न हो तो कविता तक पहुँचना असंभव है। वेदरमण ने कहा कि आलोचना सिद्धांत निर्माण का कार्य करती है। शंभुनाथ ने कहा कि आलोचना सिर्फ रचना से प्रतिमान ग्रहण नहीं कर सकती, आलोचना के कई प्रतिमान हैं। सत्र का संचालन पीयूष कांति राय ने किया।


    तीसरे दिन नासिक की आस्था मांडले ने हिन्दी कविताओं पर अपना गायन प्रस्तुत किया। नीलांबर की अपनी खास प्रस्तुति रही थीम कोलाज जिसे हावड़ा नवज्योति के बच्चों द्वारा प्रस्तुत किया कियाप्रसिद्ध अभिनेत्री एवं नृत्यांगना रश्मि बंद्योपाध्याय और मौसुमी दे ने अनामिका, नागार्जुन और मुक्तिबोध की कविताओं पर नृत्य प्रस्तुत किया। शाम के समापन सत्र में सुप्रसिद्ध नाट्यकर्मी एवं अभिनेता विनय वर्मा द्वारा निर्देशित नाटक ‘मैं राही मासूम' का मंचन किया गया, जिसे दर्शकों से काफी सराहना मिली। इस अवसर पर फिल्म पंचलैट के निर्देशक प्रेम मोदी को निनाद सम्मान एवं विनय वर्मा को रवि दवे सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के अंत में विमलेश त्रिपाठी ने संस्था की ओर से सबको धन्यवाद ज्ञापित कियाआनंद गुप्ता ।


आनंद गुप्ता


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