कविताएं - केशव शरण

केशव शरण -  जन्म : 23 अगस्त 1960 चार कविता संग्रह एक हाइकू संग्रह और एक गजल संग्रह प्रकाशित। सम्प्रति : बैंक में सेवा


                                                              -----------------------------------


        कविता और कवि तथा विज्ञापन


कविता


विज्ञापन पसंद नहीं करती है


इससे जो पैदा होता है बाजारवाद


उसकी निंदा कभी बंद नहीं करती है कविता


यह विडंबना है कि


वह रंगीन, चिकने कागज़ों पर


दिए गए विज्ञापनों के बीच


जब आती है छपकर


कवि खुश ही नहीं


स्वयं को गौरवान्वित भी महसूस करता है बेहद !


      इबादत से हटकर


कोई आया


मेरा मोबाइल पाया


और लेकर चल दिया


कोई मेरी सायकिल न लेकर चल दे


कोई मेरा बैग न लेकर चल दे


जिसमें मेरी डायरी, मेरी कलम


मैं सहम गया हूँ


मेरा ध्यान वस्तुओं की हिफाज़त पर टिक गया है


इबादत से हटकर।


       मौन की आदत और शब्दों का प्रयोग


मौन की


ऐसी आदत पड़ती जा रही है


कि जीभ की भूमिका


सिर्फ उन स्वादों तक सिमटती जा रही है


जो आमाशय की जरूरत हैं।


अब उसे


शब्दों में स्वाद नहीं मिलता


जो मस्तिष्क और हृदय की जरूरत हैं


कारण कि उनका रस निचोड़ लिया गया है


और उनमें विषाक्त भाव छोड़ दिया गया है


अब वे उनके प्रयोग के लिए


नहीं रह गए हैं।


जो प्रीति करते हैं


अब वे उनके वास्ते हैं


जो राजनीति करते हैं


         और कुछ चाहिए तो


परिस्थितियां अनुकूल रहें


मन शांत रहे


कर्म करते रहें


और क्या चाहिए


दृष्टि को सुन्दर दृश्य


कानों को खग-स्वर माधुरी


इंसानी प्रेम-बोल-रस


मस्तिष्क को स्वतंत्र विचार


और क्या चाहिए


दृष्टि को सुन्दर दृश्य


कानों को खग-स्वर माधुरी


इंसानी प्रेम-बोल-रस


मस्तिष्क को स्वतंत्र विचार


और क्या चाहिए


पेट में कुछ दाने,एक सेब, थोड़ा दूध


तन पर रेशम- खादी कुछ भी


और सर पर एक छत


जो टिन की हो या कंक्रीट की


और क्या चाहिए


स्वस्थ परिवार


आत्मीय अतिथि


मर्मज्ञ मित्र


और क्या चाहिए


और कुछ चाहिए तो


मत देना भगवान!


          यह आंच


इस ठंडाए शरीर को लेकर


इस आंच में घूमना


सुखद लगता है किस कदर


जिसमें हरे-भरे हैं शजर


फूल हैं, तितलियां हैं


खुला आसमान है


उड़ते-चहकते पंछी हैं


सड़के हैं, आते-जाते लोग हैं


मैं इस आंच में घूम रहा हूँ


और यह आंच


मेरे खून में घूम रही है


घूमते-घूमते


पहुंच रही है


मेरे हृदय


और मस्तिष्क में


और एक हरियाली वहां भी उत्पन्न हो रही है


फूल खिल रहे हैं, तितलियां उड़ रही हैं


और एक बहुत बड़ा आसमान प्रकट हो रहा है


जिसमें झुण्ड के झुण्ड पंछी पंख पसारे


गतिमान हैं सब दिशाओं में,


नीचे सुरम्य पथ हैं


और आ-जा रहे हैं लोग।


                                                               सम्पर्क : एस 2/564 सिकरौल, वाराणसी, मो. : 9415295137