रिपोर्ट - लेखकीय सरोकार की अनूठी यात्राएं

बाबा भलखु हिमाचल के विश्वविख्यात पर्यटन स्थल चायल स्थित झाझा गांव के अनपढ मजदूर थे जिन्होंने अंग्रेजी राज में शिमला कालका रेल का सर्वे किया था और इस रेल मार्ग की सबसे बड़ी बड़ोग सुरंग का निर्माण करवाया था। उनकी सूझबूझ से ही अंग्रेज हिन्दुस्तान तिब्बत रोड के निर्माण के वक्त सतलुज नदी पर कई पुल लगा पाए थे। ब्रिटिश प्रशासन ने इस अनपढ़ मजदूर को ओवरशीयर की उपाधि दी थी और अनपढ़ इंजीनियर से नवाजा था। उनकी स्मृति में रेलवे विभाग ने शिमला बस स्टेशन पर एक खूबसूरत संग्रहालय भी बनाया है। ये यात्राएं उन्हीं की स्मृति को समर्पित थीं। केरल बाढ़ आपदा के लिए भी लेखकों ने धन एकत्र किया।


     एस आर हरनोट हिमाचल में ही नहीं, देश और विदेशों तक साहित्य में चर्चित नाम है लेकिन अपनी संस्था हिमालय साहित्य संस्कृति मंच के बैनरों में बिना सरकारी सहायता के अपने साधनों और लेखकों के सहयोग से विविध साहित्यिक आयोजनों के लिए भी जाने जाते हैं। हमने देखा है कि वे आए दिन कोई न कोई नया काम हिमाचल के ही नहीं बल्कि देशभर से शिमला आने वाले लेखकों के साथ मिलकर करते रहते हैं। उन्होंने हमेशा अति वरिष्ठ और युवा तथा नवोदित साहित्यकारों को मंच ही नहीं प्रदान किया बल्कि उन्हें सम्मानित भी करते रहे हैं। शिमला बुक केफे जब गत वर्ष खुला तो वहां हरनोट ने देशभर से लेखकों से न केवल किताबें एकत्रित कर भेंट की बल्कि यहां साप्ताहिक गोष्ठियों का आयोजन भी शुरू किया। बुक कैफे का संचालन कंडा और कैथू जेल के कैदी करते हैं जो अपने आप में एक मिसाल है। जेलों को सुधार गृहों में बदलने की परिकल्पना हिमाचल प्रदेश के पुलिस महा निदेशक (जेल) सोमेश गोयल की है जो स्वयं साहित्य प्रेमी हैं और लेखकों के साथ कई आयोजनों में सक्रिय रूप से भाग भी लेते हैं।


   इस बार हरनोट ने शिमला की प्रतिष्ठित संस्था नवल प्रयास, जिसका संचालन डा. विनोद प्रकाश गुप्ता करते हैं के साथ मिल कर दो बड़े आयोजन किए जो बरसों-बरसों याद किए जाएंगे। गुप्ता जी आईएएस अधिकारी रहे हैं जो हिमाचल प्रदेश सरकार से प्रधान सचिव के पद से सेवानिवृत हैं और अब साहित्य सृजन और नवल प्रयास के बेनर में प्रदेश में ही नहीं देश भर में साहित्यिक आयोजन कर रहे हैं। हिमालय मंच ने नवल प्रयास के साथ पहले कार्यक्रम की शुरूआत जेल के पुलिस महा निदेशक सोमेश गोयल के साथ कंडा जेल में नेलसन मंडेला दिवस पर साहित्यिक गोष्ठी के आयोजन से की जो अति सफल रही। इसमें लगभग पांच सौ कैदियों ने भाग लिया और शिमला से १५ लेखक शामिल हुए। कैदियों ने भी कविता पाठ किए। इसके बाद हरनोट के एक अनूठे ‘कन्सेप्ट' के तहत् शिमला-कालका विश्व धरोहर रेलवे में इस रेल के सर्वेक्षक अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलखू की स्मृति में १९ अगस्त को ३० लेखकों के साथ आयोजित साहित्य यात्रा अभूतपूर्व थी जिसकी पूरे देश में चर्चा हुई है और उसके बाद बाबा भलखू के पुश्तैनी गांव झाझा (चायल) की साहित्य सृजन यात्रा भी। इन आयोजनों की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि साहित्य सरकारी सभागारों से बाहर निकल कर अपने पैरों पर चल पड़ा और लेखकों ने आपसी सहयोग से साहित्य को ग्रामीण सरोकारों से जोड़ने का अभूतपूर्व प्रयास किया और कार्यक्रम आयोजित किए जो एक मिसाल बन कर रह गए।


     शिमला-कालका रेल में इस अनूठे साहित्यिक संवाद । का उस वक्त व्यापक स्वागत हुआ जब हरनोट ने अपनी फेसबुक वाल पर २४ जुलाई, २०१८ को देर रात ११ बजकर ४२ मिनट पर एक पोस्ट लगाई जिसका टाइटल था-शिमला कालका रेलवे में साहित्य गोष्ठी-सादर आमंत्रण। इस अनूठी गोष्ठी को बाबा भलखू साहित्य संवाद रेल यात्रा का नाम दिया गया और उनकी इस पोस्ट में भलखु के योगदान पर भी प्रकाश डाला गया था। महज आठ-आठ सौ रूपए प्रति लेखक लेकर इस यात्रा की सहभागिता रही। इसके अतिरिक्त पुलिस महा निदेशक व लेखक सोमेश गोयल का भी लेखकों को पूरा सहयोग मिला। प्रदेश से ही नहीं बल्कि देश भर । के लेखकों ने सहर्ष इस यात्रा में आने की इच्छा जाहिर की लेकिन स्थानाभव के कारण केवल ३० स्थानीय लेखकों का ही आरक्षण हो पाया।


    यात्रा १९ अगस्त, २०१८ को शिमला रेलवे स्टेशन से १०.२५ पर प्रारम्भ हुई। यात्रा शुरू होने से पूर्व लेखकों को थोड़ी मायूसी इसलिए हुई कि हरनोट समय पर नहीं पहुंच पाए। उनकी धर्मपत्नी अचानक बीमार हो गईं और उन्हें । अस्पताल ले जाना पड़ा। फिर भी चार भागीदार लेखकों की सूझबूझ ने हरनोट को तारादेवी स्टेशन पर अन्य लेखकों में शामिल करवा दिया जिससे लेखकों के चेहरे की मायूसियां खुशी में तबदील हो गई। इस यात्रा में साहित्य के सत्र शिमला से बड़ोग तक रेलवे स्टेशनों के नाम से तय किए गए थे। जिनमें शिमला, समरहिल, कैथलीघाट, सलोगड़ा, सोलन और बड़ोग। यात्रा शुरू होने से दो दिनों पहले पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी जी का देहान्त हो गया। इसलिए यात्रा के सत्रों में थोड़ा परिर्वतन किया गया और पहला सत्र उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में आयोजित हुआ। उसके बाद संस्मरण, लघु कथाएं, व्यंग्य, कहानी और कविता के सत्र यथावत आयोजित हुए। ३० लेखक जब बड़ोग स्टेशन पर पहुंचे तो यह देखकर अचम्भित थे कि वहां असंख्य लोग हाथ में फूल मालाएं लेकर लेखकों का स्वागत कर रहे थे। यह दृश्य सचमुच भावविभार कर देने वाला था। उनके स्वागत में स्वयं कैथलीघाट और बड़ोग के रेलवे अधिकारी तो थे ही बल्कि सोलन से लेखक, पत्रकार, रंगकर्मी और बहुत से प्रतिष्ठित लोग शामिल थे। कैथलीघाट रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर संजय गेरा तो पूरी यात्रा में साथ रहे। जेल ट्रैक की सम्पूर्ण जानकारी सुमित राज देते रहे। लेखकों ने बड़ोग में रेलवे कण्टीन में दोपहर का भोजन लेकर फिर शिमला के लिए कालका-शिमला रेल में यात्रा शुरू की और पुनः कहानियों, कविताओं, संस्मरणों और गजलों का दौर चला। आखिरी सत्र महिला लेखकों के लिए विशेष तौर पर उनके रचनापाठ के लिए समर्पित किया गया।


    इस यात्रा में जो लेखक शामिल रहे, वे हैं: एस.आर. हरनोट, विनोद प्रकाश गुप्ता, डॉ. हेमराज कौशिक, डा. मीनाक्षी एफ पाल, आत्मा रंजन, सुदर्शन वशिष्ठ, डा. विद्या निधि, कुल राजीव पंत, गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय, राकेश कुमार सिंह, सतीश रत्न, सीता राम शर्मा, दिनेश शर्मा, डॉ. अनुराग विजयवर्गीय, शांति स्वरूप शर्मा, कौशल मुंगटा, अंजलि दीवान, उमा ठाकुर, प्रियंवदा, वंदना भागड़ा, रितांजलि हस्तीर, अश्विनली कुमार, कल्पना गांगटा, वंदना राणा, सुमित राज, निर्मला चंदेल, पौमिला ठाकुर, संजय गेरा।।


    इस यात्रा का दूसरा चरण लेखकों ने २ सितम्बर, २०१८ को बाबा भलखु के पैत्रिक गांव झाझा में पूर्ण किया जिसमें २१ लेखक और बहुत से ग्रामीण शामिल हुए। लेखकों ने यात्रा की शुरूआत न्यू शिमला बी सी एस से की। यात्रा का पहला पड़ाव ऐतिहासिक जुनगा गांव था जो क्योंथल रियासत की राजधानी भी रही है। यहां ग्राम पंचायत जुनगा की प्रधान श्रीमती अंजना सेन ने लेखकों के स्वागत और साहित्य सृजन संवाद का पंचायत घर में आयोजन किया जिसमें तकरीबन ९० महिलाएं और पुरूष शामिल हुए। यह पंचायत और महिला मंडल ने संयुक्त रूप से आयोजित किया। उनके सहयोगी रहे बीडीसी की सदस्य सीमा सेन, उप प्रधान मदन लाल शर्मा, हिमाचल पर्यटन निगम के पूर्व सहायक महा प्रबन्धक देवेन्द्र सेन महिला मंडल की प्रधान आशा कौंडल और अन्य पंचायत के सदस्य। लेखकों ने पंचायत प्रधान और उपस्थित आमजनों से किसान जीवन को लेकर भी संवाद किया। उन्होंने बहुत सी योजनाओं का ब्यौरा लेखकों से साझा की। लेखकों ने भी कृषि, पशु पालन और अन्य जन साधारण की सुविधाओं केसंदर्भ में लोगों से विस्तृत चर्चा की।


    कवि गोष्ठी और लोक संगीत का मिलाजुला कार्यक्रम तकरीबन दो घण्टों तक चला। जुनगा पुलिस ट्रेनिंग सैन्ट्र की पुलिस कर्मी और स्थानीय निवासी संतोष डोगरा और आशा कौंडल ने लोकगीतों से समा बांध दिया। पंचायत प्रधान अंजना सेन ने लेखकों का स्वागत और आभार प्रकट करते हुए इस अनूठी गोष्ठी और यात्रा की सराहना की और लेखकों को अक्तूबर में एक अन्य गोष्ठी के लिए आमंत्रित किया। देवेन्द्र सेन ने भी लेखकों के सम्मान में संबोधन किया। सुदर्शन वशिष्ठ ने जुनगा से अपने आत्मीय रिश्तों के बारे में प्रकाश डाला। वहीं नवल प्रयास के अध्यक्ष विनोद प्रकाश गुप्ता ने भी अपनी सेवा के दौरान जुनगा से रहे अपने सम्बन्धों के बारे में जिक्र करते हुए पंचायत का इस आयोजन के लिए आभार प्रकट किया। हिमाचल मंच के अध्यक्ष एस आर हरनोट ने इस यात्रा के प्रयोजन पर विस्तार से जहां प्रकाश डाला वहीं पंचायत और स्थानीय लोगों के साथ इस आयोजन को अनूठा करार दिया। उन्होंने कहा कि इसके बाद लेखक इस तरह की साहित्यिक यात्राएं जारी रखेंगे जो दूर दराज के गांव के लिए वहां के स्थानीय लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने की दृष्टि से लेखकों की आपसी सहभागिता से ही होगी। इसके बाद जुनगा के राजा विक्रम सेन ने लेखकों का अपने कलात्मक महल जुनगा में स्वागत किया और लम्बी बातचीत हुई। राजा जुनगा की पुश्तैनी लाइब्रेरी पुरानी और नई पुस्तकों से सम्पन्न है जिसमें कई हजार हस्तलिखित पांडुलिपियां टांकरी और अन्य भाषाओं की मौजूद हैं जहां तक कोई सरकारी विभाग अभी तक नहीं पहुंच पाया। महल में कई कलात्मक और पुरातात्विक वस्तुओं का बड़ा संग्रह है। इतिहास के शोध छात्र यहां अध्ययन के लिए आते रहते हैं।


     इस यात्रा का दूसरा पड़ाव चायल स्थित झाझा गांव था। लेखकों के इंतजार में शिमला आकाशवाणी से सेवानिवृत वरिष्ठ लेखक व रंगकर्मी बी.आर.मेहता और चायल एकांत रीट्रीट के मालिक व स्थानीय निवासी देवेन्द्र वर्मा व अन्य ग्रामीण पहले से ही मौजूद थे। लेखकों के आतिथ्य का कार्यभार देवेन्द्र वर्मा ने संभाल रखा था। इसके बाद लेखकों ने बाबा भलखु के पुश्तैनी घर का भ्रमण किया और काफी समय उनके परिजनों के साथ व्यतीत किया। भलखू परिवार के वरिष्ठ सदस्य पोस्ट आफिस से सेवानिवृत दुर्गादत ने लेखकों को भलखू चित्र और बहुत से दस्तावेज दिखाए जो अंग्रेजो ने भलखू सम्मान में दिए थे। बी आर मेहता ने जो बाबा भलखु समिति के अध्यक्ष भी हैं, भी बहुत सी बातें उनके बारे में बताई और उनकी स्मृति में किए गए कार्यों का ब्यौरा भी लेखकों को दिया। झाझा में एक मात्र भलखु का ही घर है जो अपनी प्राचीनता को बरकरार रखे हुए है। धज्जी दीवाल और पत्थर की छत और बरामदे वाले इस दो मंजिला भवन का पुरातन सौन्दर्य देखते ही बनता है। इसकी धरातल मंजिल में गौशाला और भंडार है जबकि दूसरी मंजिल, जहां भलखू खुद रहते थे, अपने रहन सहन के लिए हैं।


     साहित्य गोष्ठी का आयोजन युवा कृषक सुशील ठाकुर ने अपने निवास पर किया। उनका सहयोग उनकी धर्मपत्नी रमा ठाकुर ने दिया जो हिमाचल न्यूज का संचालन करती है। लेखकों के स्वागत में सुशील जी के मित्र व आभी प्रकाशन के संचालक जगदीश हरनोट विशेष रूप से झाझा पहुंचे थे। जुनगा और झाझा की इन गोष्ठियों का सफल संचालन युवा चर्चित कवि आत्मारंजन ने किया।


     तीन लेखकों एस.आर. हरनोट, दिनेश शर्मा और मोनिका छट्ट ने बाबा भलखू को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए कविताएं पढ़ीं जो बहुआयामी अर्थों को लिए हुए थी। बी आर मेहता के साथ जिन अन्य लोगों ने कविताओं का पाठ किया उनमें विनोद प्रकाश गुप्ता, सुदर्शन वशिष्ठ, कुल राजीव पंत, अश्विनी गर्ग, सतीश रत्न, गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय, राकेश कुमार सिंह, नरेश दद्योग, शांति स्वरूप शर्मा, कुशल मुंगटा, कल्पा गांगटा, उमा ठाकुर, धनंजय सुमन शामिल थे। इस यात्रा में जहां सोलन से वरिष्ठ लेखक रत्न चंद निर्झर शामिल रहे वहां शिमला भ्रमण के लिए आए बनारस के युवा शोध छात्र व कवि कुमार मंगलम भी भागीदार रहे जिन्होंने भी कविता पाठ किया।


     हालांकि इन यात्राओं की सम्पूर्ण कल्पना और संरचना जानेमाने लेखक एस.आर.हरनोट की रही है फिर भी उन्होंने अपने साथ न केवल नवल प्रयास साहित्यिक संस्था को जोड़ा बल्कि इसका पूर्ण श्रेय सभी भागीदार लेखकों को दिया है, जिसके उदाहरण आज बिरले ही मिलते हैं।


     लेखकों ने झाझा गांव में एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकार से मांग की गई कि शिमला कालका रेल लाइन को चायल झाझा गांव तक ले जाया जाए, उनके पुश्तैनी मकान को धरोहर भवन के रूप में सुरक्षित किया जाए और झाझा गांव को भी धरोहर गांव के रूप में विकसित किया जाए। साथ ही चायल में स्थित भलखू पार्क को उनके धरोहर दस्तावेजों को सुरक्षित रखते हुए उसका सुन्दरी किया जाए।


                                                                                                                                                                    -अश्विनी कुमार, शिमला