प्रेम नंदन जन्म : 25 दिसम्बर 1980 को फतेहपुर, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव फरीदपुर में। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), बी.एड। पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। परिचय : लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। दो-तीन वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा तीन-चार वर्षों तक भारतीय रेलवे में स्टेशन मास्टरी के पश्चात सम्प्रति अध्यापन।
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संदिग्ध
प्रश्न और उत्तर
दोनों संदिग्ध हैं।
आज के परिवेश में
उत्तर ही नहीं
प्रश्नों को भी
देखने-परखने की
सख्त जरूरत है।
वे प्रश्न ही हैं,
या प्रश्नों का मुखौटा पहने
उत्तरों की ओट में छिपे बैठे बहरूपिए
लोगों के सामने
आना ही चाहिए
प्रश्नों और उनके उत्तरों का सच !
ओ अन्नदाता
बहुत पहले ही
छीन लिए गए हैं तुमसे
तुम्हारे सपने
और अब छीने जा रहे हैं
तुम्हारे खेत,
हँसिया, खुरपी, फावड़ा,
सिर्फ फसल काटने,
खर-पतवार हटाने.
जमीन गोड़ने के लिए नहीं हैं।
अब अगर जीना है
तो इन्हें हथियार बनाएँ
व्यवस्था को
छीलें, काटें और खर-पतवार हटाएँ
अपने खेत ,
अपना अस्तित्व बचाएँ
शहर से इश्क होना
तुम्हारे शहर में
घूमते हुए आज
कई बार
मिलना-बिछड़ना हुआ तुमसे
उसी कॉफी हाउस में
किनारे वाली मेज पर
अपने हिस्से की कॉफी पीते हुए
तुम्हारे कप में
ठंडी हो रही कॉफी से
उठती हुई भाप में
खोया रहा देर तक
उसी चिड़ियाघर की
उसी प्यारी बेंच पर
तुम्हारे आगोश में
लेटा रहा देर तक
आँखें बंद किए हुए
जाने क्या सुनता रहा
जाने क्या गाता रहा
उसी मल्टीप्लेक्स में
वही फ़िल्म देखकर
दाहिनी हथेली से
बाईं हथेली को
बार-बार छूता रहा
तुम्हें याद करता रहा
तुम्हें प्यार करता रहा
कई चौराहों की भीड़ में खोकर
कई मोड़ों पर
फिर-फिर मिले हम
हाथ मिलाया
विदा हुए
फिर भी कहाँ जुदा हुए
आज फिर
खुद को छोड़कर तुम्हारे शहर में
अपने घर लौटा
इस तरह आज फिर
तुम्हारे शहर से इश्क हो गया मुझे !
औरतें बनाम औरतें
शहर से आई
सजी धजी औरतें
जमा हैं सुबह से
शहर से दूर,
गाँव की सरहद पर
वटवृक्ष के नीचे
कर रहीं पूजा
वट वृक्ष की कि
लम्बी हो उम्र
उनके पतियों की
गाँव की पाँच - सात औरतें
मजदूरी करने
जा रहीं शहर
रूखी सूखी रोटियों की पोटली दबाए
ताकि भूखों न मरना पड़े
उनके परिवार को;
वे देख रहीं विस्मय से
वट वृक्ष पूज रहीं
शहरी औरतों को
वीडियो कैमरे में
कैद हो रहा है
यह सारा आयोजन
शरारतन जब कैमरा
घूमता है।
मजदूरिनों की ओर
वे ऐसे सिकुड़ जाती हैं।
किया जा रहा हो जैसे
उनको निर्वस्त्र
शहरी औरतें
खिलखिला पड़ती हैं
उनको सिकुड़ता देख
मज़दूरिने
लगभग दौड़ने लगती हैं
शहर की ओर
उनकी पीठ पर
चींटियों की तरह
रेंगती रहती है दिनभर
शहरी औरतों की
लिजलिजी हँसी!
संपर्क : उत्तरी शकुन नगर, सिविल लाइन्स, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश मो.नं.: 9336453835