डॉ. अखिलेश शर्मा जन्म : 1956 शिक्षा : एम.बी.बी.एस., डी.सी.एच. संप्रति : म.प्र.शासन में मेडिकल आफिसर पद पर कार्ययरत। लेखन : सन् 1984 से लेखन। देश, विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में कविता, लघुकथा, गज़ल, बाल रचनाएं, हाइकु, व्यंग्य आदि प्रकाशित।। कई साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित।
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खिलौने और गुड़िया
वह बुजुर्ग खिलौने वाला
निकल रहा है बरसों से
मेरे घर के सामने से
नियत समय पर
बाँसुरी बजाते हुए
बुजुर्ग नहीं था युवा था वह पहले
अब बुजुर्ग हो गया है।
पूरी दाढी व सिर के बाल/सफेद
उसके ठेले में
होते थे
छोटी-छोटी कारें, बंदर, गुड़िया, गुब्बारे,
बंसी, गेंद, बल्ला, शटल,
हनुमान जी का गदा, रामजी का धनुष
बुलबुले उड़ाने वाला छल्ला, डिब्बी
आज उसकी बाँसुरी की आवाज़
मधुर नहीं थी।
बहुत उदासी थी उसकी धुन में
मैंने जिज्ञासावश देखा पास जाकर
उसके ठेले में वे सब खिलौने नहीं थे।
थे, मेट्रो ट्रेन, हेलीकाप्टर, एरोप्लेन, रोबोट,
मशीन गन, पिस्तौल, मोबाइल
और बहुत सी गुड़ियाएँ
कुछ के बाल नुचे हुए, खींचे हुए
किसी का चेहरा जला हुआ, झुलसा हुआ
किसी के शरीर पर घाव,
फटे हुए कपड़े
आँखे, जिनमे भय, दहशत, उदासी
किसी के मुँह पर कपड़ा बँधा
हाथ-पैर बँधे
टेढ़ी, लटकी हुई गर्दन
उस पर रस्सी का फंदा
किसी के मुँह से निकलता झाग
मैंने उससे पूछा ‘
ये कैसी गुड़ियाएँ हैं?'
उसने मुझे शून्य आँखों से घूरा
झल्लाकर बोला
‘नहीं पढ़ते हो क्या
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