डा.ऋतु त्यागी - जन्म : 1 फरवरी प्रकाशन : एक कविता संग्रह, छिटपुट रचनाएँ पत्रिकाओं में प्रकाशित शिक्षा : बी.एस-सी, एम.ए (हिन्दी,इतिहास), नेट (हिन्दी,इतिहास), पी-एच.डी सम्प्रति : पी.जी.टी हिंदी, केंद्रीय विद्यालय सिख लाईस, मेरठ
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तुम्हें शायद पता न हो !
पर मुझे
तुम्हारी बरसती आँखों से इश्क है
जब तुम रोती हो
तो मैं खुद को मज़बूत पाता हूँ
क्योंकि तब मेरा कंधा सरककर
एक वृक्ष बन जाता है
और मैं देखता हूँ
कि तुम उस पर सिर पर टिकाकर
एक छोटी बच्ची बन जाती हो
उस समय
तुम्हारी उनींदी पलकों में नाचते हैं सपने
तब मैं बादल बनकर
भीतर ही भीतर बरस रहा होता हूँ।
जानती हो
तुम्हें शायद पता न हो !
मुझे तुम्हें
सलाहों के गुलदस्ते भेजना
बहुत पसंद है
जिन्हें तुम अपने घर के
उदास कोनों में सजा लेती हो
उस समय मुझे तुम्हारे घर में
चुपके से दाखिल होकर
उनकी महक से
सराबोर होना बहुत पसंद है
सुनो !
आज तुम्हें एक राज़ बताऊँ
जो शायद
तुम्हें पता न हो
आजकल मुझे तुम्हारा खुद फैसले लेना
और हँसते हुए
मेरी सलाहों के गुलदस्ते को
एक कोने में सरका देना
बिलकुल पसंद नहीं है
उस समय मैं
बादल की तरह फटता हूँ
और अपने ही सैलाब में डूब ज
तुम नादान हो अभी
तुम नादान हो अभी
जानते नहीं जिंदगी की गुस्ताखियां
रोते हो
तो पल भर में ढूंढ़ लाते हो हँसी के टुकड़े
मैं तुम्हारी हँसी के वही टुकड़े
अपने बटुए में रखकर
रोज़ ले जाती हूँ अपने घर
और अपने घर की हवा में
घोल देती हैं उन्हें
पर मैंने तुम्हारी हँसी के कुछ टुकड़े
सँभालकर रख लिए हैं अपने बटुए में
मुझे मालूम है कि आज
स्कूल के बेशकीमती दरवाजे से बाहर
निकल जाओगे तुम
पर याद रखना
कि हर खुला दरवाजा
एक नई मंजिल की तलाश है
इस रास्ते में बहुत से पत्थरों से
मुलाकात होगी तुम्हारी
उन पत्थरों से तुम टूटना पर बिखरना नहीं
बिखरना तो समेट लेना खुद को
तो पीछे मुड़कर देखना
मेरे बटुए में तुम्हारी हँसी के वही टुकड़े
अभी सुरक्षित पड़े हैं चाहो तो ले जाना उन्हें।
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