धर्मेन्द्र त्रिपाठी - जन्म : 26 जुलाई 1967 ई. शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, 1989), बी.एड. (1994) गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर सन् 1986 से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित एवं आकशवाणी, दूरदर्शन गोरखपुर से प्रसारित। सम्प्रति : श्री गांधी स्मारक इण्टर कॉलेज, हाटा में अध्यापन।
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कविता
शेष नहीं रहेगा कुछ भी
तब भी कुलबुलाएंगे शब्द
खुदुर-बुदुर करते हुए
बतियाएंगे आपस में
देखो
यहीं कहीं होगी कविता
खोजो उसे
हूँढो उसे तीव्रता के साथ
मरुस्थल के प्रत्येक कण में गहरे सागर के भीतर
मिट्टी के अन्दर
कोड़ो-
गहराई के भीतर
तहों के अन्दर
उस पार
आदमी के भीतर
गुँथ रहे विचार के रूप में
उठती हई
बादलों की तरह
लहरों के वेग की तरह
नदियों के प्रवाह के बीच
तराशो, मूर्तिकारों-
मजूर की रोटी में
किसान की बेटी में
रोजी-रोटी की तलाश में
भटके युवक की आँखों में
देखोपानी के बुलबुलों की तरह
बनती-बिगड़ती की तरह
गोरी की आँखों में पुतली के बीच
निर्मल हँसी में छिपी
बहुत कुछ कहती हुई
घुमती हुई रूई के फाहे की तरह
छितराए आँगन में
तुलसी की छाया के बीच
दीये की लौ की तरह
पवित्र
देदीप्यमान
बाबू जी
बीत गया यह पल भी
बीते वर्ष की तरह
चीजें वहीं की वहीं पड़ी हैं।
जो जैसे थीं
छाता-कुर्ता-धोती-अंगोछा
आज भी
अगोर रहे हैं
पहले की तरह
ग्यारह-वर्ष का समय
यों ही बीत गया
चुटकी बजाते
लगता है-अभी-अभी गुजरा है समय
पहले की तरह
कि कहीं से
आ धमकेंगे बाबू जी
सफेद कुर्ता-धोती में
पूछेगे हाल-चाल
फिर कहेंगे-
कपड़े साफ है कि नहीं
पिछड़ रही है खेती
बुआई नहीं हुई है अभी
फलाने का काम अटका पड़ा है
कई दिनों से
बेचारे की कोई सुनता नहीं
मेरे बिना गए
नहीं होगा उसका काम
जाना ही होगा
मुझे अभी तत्काल।
देखते-देखते
अस गुज़र गया
लेकिन, लगता नहीं
बाबू जी चले गए हैं हमारे बीच से
हर रोज आते हैं
समझाते हैं
संकट के समय में
दिलासा देते हैं
और जीने का सम्बल भी
सम्पर्क : श्रीराम तिवारी, 284-एफ, अशोक नगर,
बशारतपुर, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, मो.नं. : 9451513238