यह १७ फरवरी २०१५ की रात है या इतिहास का कोई जीवंत अध्याय। पटना राजधानी एक्सप्रेस १२० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भाग रही है। नीचे की बर्थ पर मेरे सामने बैठे केदारनाथ सिंह मानों विश्व कविता का पूरा इतिहास खोल रहे हैं। उस नीम अंधेरी रात में हम कविता के एक-दूसरे ही भूगोल में पहुंच गए हैं। वे बताते हैं कि कैसे जब निकारागुआ के पादरी और कम्यूनिस्ट कवि अर्नेस्तो काडैनाल ने हॉलीवुड की ड्रीमगर्ल मर्लिन मुनरो की आत्महत्या पर कविता लिखी तो तहलका मच गया- 'हे ईश्वर/ तुम तो जानते हो वह किससे बात करना चाहती थी।' (फिर धीरे से कहते है - वह अमेरिकी राष्ट्रपति से बात करना चाहती थी। वह प्रेम में थी। कितना दुखद है प्रेम में किसी स्त्री का आत्महत्या करना!)
अब बात प्रेम पर शुरू हो गई। स्मृति के गहरे अनंत से गुजरते हुए उन्होंने फिर अर्नेस्तो कार्डेनाल को याद किया, 'जब तुम नहीं होती न्यूयार्क में तो कोई नहीं होता न्यूयार्क में। जब तुम होती हो न्यूयार्क में तो कोई नहीं होता न्यूयार्क में।'
ऐसे महान कवि को कम्युनिस्ट पार्टी ने निकाल दिया क्योंकि उन्होंने पादरी का फर्ज अदा करते हुए पोप के चरण चूमे थे।
मैंने उन्हें महान् रूसी कवि मायकोवस्की और स्तालिन का संवाद याद दिलाया। वे बोल पड़े, 'हां, ठीक याद दिलाया तुमने । हुआ यह था कि मास्को के एक छोटे से अनजान कैफे में चार दोस्तों के बीच एक युवा कवि ने स्तालिन के खिलाफ एक कविता पढ़ी। वह मायकोवस्की का शागिर्द था। दूसरे दिन मायकोवस्की के घर स्तालिन का फोन आ गया। स्तालिन ने उस युवा कवि का नाम लेकर पूछा कि वह कैसा कवि है। मायकोवस्की ने डरते हुए घबराकर बोल दिया कि वह साधारण कवि है। स्तालिन ने यह कहते हुए फोन रख दिया, ‘आप अपने दोस्त को बचाना नहीं चाहते।' मायकोवस्की की पत्नी ने उन्हें खूब डांटा। उस रात के बाद उस युवा कवि का कुछ पता नहीं चला। यानी कि स्तालिन जैसा तानाशाह भी किसी कवि को मरवाने से पहले यह जानना चाहता था कि उसका क्या स्तर है। हो सकता था कि मायकोवस्की के यह कहने से उसकी जान बच जाती कि वह एक महत्वपूर्ण कवि है।
कवि केदारनाथ सिंह और अजीत राय
सारी दुनिया घूमने के बाद यदि पूछा जाए कि किस देश में कुछ महीने बिताना चाहेंगे?
एक क्षण के लिए वे कहीं खो गए। कुछ याद करते हुए बोले- ‘इटली'। मैंने जोड़ा- ‘कवि को प्रेम करने के लिए इटली से अच्छी जगह दुनिया में और कहीं नहीं है।'
उन्होंने कहा- 'कवि हीं क्यों? किसी के लिए इटली से अच्छी जगह दूसरी कोई नहीं। एक बार रोम और वेनिस के बीच पादुआ गांव में प्रधान के घर ठहरा था। एक १९- २० साल की लड़की मेरी दुभाषिया थी। उसी गांव में माइकल एंजेलो की पहली दीवाल पेंटिंग थी। उस लड़की का एक पचहत्तर साल का प्रेमी था जो कवि था। हम एक ऐतिहासिक इमारत को देखने गए। हमें १२० सीढियां चढ़कर ऊपर पहुंचना था। हम ऊपर पहुंच गए। वहां जो हुआ सो हुआ। कुछ देर बाद अचानक उस लड़की को याद आया कि उसका बुढा प्रेमी तो नीचे छुट गया। वह नीचे की ओर भागी। पीछे-पीछे मैं भी भागा। मैं क्या देखता हूं कि वह बूढ़ा रेंगता हुआ जैसे-तैसे बीस सीढ़ियां चढ़कर सुस्ता रहा था और उदास आँखों से ऊपर की सीढ़ियों की ओर देख रहा था। वह लड़की भागती हुई उसके पास गई और उसे बेतहाशा चूमने लगी।
मैंने महसूस किया कि यह दृश्य दुनिया की किसी भी महान् कही जानेवाली प्रेम कविता से कम नहीं है। तभी उन्हें कवि बायरन की याद आई। उन्होंने कहना शुरू किया - ‘फ्लोरेंस (इटली) के पास अपने कॉटेज की बालकनी से समुद्र को निहारता हुआ बायरन इतना भाव विह्वल हो गया कि समुद्र में कूद गया। एक-डेढ़ किलोमीटर तैरने के बाद किसी तरह किनारे लगा। आज भी वहां बायरन का स्मारक है।' ।
मुझे लगा कि मास्को जैसे किसी कसक की तरह उनके जिगर में बसा हुआ है। मैंने लियो तोलस्तोय का प्रसंग छेड़ दिया। एक लंबी सांस लेक किया।