श्रद्धांजलि/केदारनाथ सिंह - एक अजातशत्रु का जाना -प्रद्युम्न कुमार सिंह

केदारनाथ सिंह शीर्ष आधुनिक हिंदी कवियों एवं लेखकों में प्रमुख हैं। उनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पैनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। उन्होंने कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएं की हैं। केदारनाथ सिंह का जन्म १९३४ में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में हुआ था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से १९५६ में हिन्दी में एम.ए. और १९६४ में पी-एच.डी की। केदारनाथ । सिंह ने कई कॉलेजों में पढ़ाया और अन्त में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कविता व गद्य की अनेक पुस्तके रची और अनेक सम्मानों से सम्मानित हुए। केदारनाथ सिंह की कविता में गांव व शहर का द्वन्द्व साफ नजर आता है। केदारनाथ सिंह की काव्य-संवेदना का दायरा गांव से शहर तक परिव्याप्त है या यह कि वे एक साथ गांव के भी कवि हैं। तथा शहर के भी। दरअसल केदारनाथ सिंह पहले गांव से शहर आते हैं फिर शहर से गांव। नौकरी के दौरान वह गांव से शहर और शहर से गांव की अनवरत यात्रा करते रहे। यही कारण है, उनकी कविता में गांव और शहर दोनों की भाषा व अनुभूति का गाझिन समन्वय प्राप्त होता है। केदार तारसप्तक के दौर में बौद्धिक कवि माने जाते थे लेकिन १९५५ में लिखी गई 'अनागत' कविता की बौद्धिकता धीरे-धीरे तिरोहित होती है, और यह परिवर्तन जितना केदारनाथ सिंह के लिए अच्छा रहा, उतना ही हिंदी साहित्य के लिए भी अच्छा रहा। यही कारण है उनकी कविता बौद्धिकता और प्रगतिशीलता दोनों का निर्वहन करती है। उनमें नागार्जन जैसा लोक है पहाड है, नदी है, गांव है, गांव का आंगन है, पेड़-पौधे चिडियां हैं मगर प्रगतिशील कवियों की तरह भावुकता नहीं है। वे विचारधारा के स्तर पर प्रतिबद्ध नहीं रहे। कविता की बौद्धिकता और कलावाद उनको प्रयोगवाद से जोड़ती है तो कविता की जमीन उन्हें लोकधर्मी चेतना से जोड़ती है। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं- अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, तालस्तॉय और साइकिल, सृष्टि पर पहरा। इन काव्य कृतियों के अतिरिक्त उन्होंने धूमिल आदि पर बेहतरीन समीक्षाएं भी लिखीं और उन्होंने काव्यशास्त्र पर भी विशेषकर बिम्बवाद पर अपना अभिमत पेश किया। कवि केदारनाथ सिंह को मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, ज्ञानपीठ सम्मान, जैसे लगभग एक दर्जन पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। केदारनाथ सिंह की कविताएं वैविध्य से भरी हुई हैं, उनकी कविता समाज के तमाम सरोकारों को खुद में समेटे हुए है। उनकी कविताएं मूलतः ‘दानों' के महत्व, ‘रोटी' की चिन्ता, और मानवीय संवेदनाओं' की महक को केंद्र में रखती और रेखांकित करती कविताएं हैं। बीसवीं सदी के अंतिम तीन दशकों में जब मुक्तिबोध, धूमिल, नागार्जुन व त्रिलोचन जैसे बड़े कवियों की परम्परा में रघुवीर सहाय व कुंवर नारायण जैसे समकालीन कवि जुड़ रहे थे, ऐसे में इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए उनके बरक्स उन्होंने मुख्यतः इन्हीं तीन बातों से जुड़कर हिन्दी काव्य - साहित्य को एक नया आयाम दिया। हालांकि उन्होंने इन विषयों से इतर भी कविताएं रची हैं किन्तु जहाँ भी उनकी कविताओं में दानों का उल्लेख आया है, वहाँ वे परम्परा की ओर जाते हुए, मनुष्य और उसके अस्तित्व के उद्गम की ओर बढ़ते हुए, किसी प्रवृत्ति के मूल की ओर जाने का प्रयास करते हुए  दिखते हैं। उनकी कविता 'आवाज' में- “पकते हुए दानों के भीतर / शब्द के होने की पूरी संभावना थी/ मुझे लगामुझे एक दाने के अन्दर घुस जाना चाहिए। पिसने से पहले मुझे पहुँच जाना चाहिए। आटे के शुरू में''। केदारनाथ सिंह की ज्यादातर कविताओं में बिम्ब प्रायः प्रकृति पर आधारित । हैं जिनका उद्देश्य मानवीय संवेदना के साथ-साथ विचारों का गहराई तक संचार करना है। 'बाघ' कविता में बाह्य जगत की भयावहता, बिम्ब के साथ ही जुड़ी है, अत: वह हमें एक अलग ढंग से सोचने पर मजबूर करती है और संवेदना से कहीं ज्यादा, विचारों को उद्वेलित करने का काम करती है। 'बाघ' कवि केदारनाथ सिंह की एक लम्बी एवं प्रसिद्ध कविता-श्रृंखला है, जिसमें छोटे-बड़े इक्कीस खंड हैं। ‘प्रतिनिधि कविताएं' के अन्तर्गत बाघ-श्रृंखला में छोटे-बड़े सोलह खंड हैं। 'बाघ' को लिखने की प्रेरणा कवि को हंगरी भाषा के रचनाकार यानोश पिलिंस्की की एक कविता पढ़ने के बाद मिली थी। यानोश पिलिंस्की की उस कविता में कवि को अभिव्यक्ति की एक नई संभावना दिखी थी। वह कविता ‘पशुलोक' से संबंधित थी। ‘बाघ' पर बातचीत के पहले हम, केदारनाथ सिंह का पशु-जगत् के साथ काव्य-बर्ताव कैसा रहा है यह देख लें। साहित्य में और आम-जीवन में भी बन्दरों की जो छवि चित्रित है वह चंचल, उछल-कूद करने वाले, दूसरे के हाथों से कुछ छीना-झपटी करने वाली छवियाँ ही चित्रित हैं लेकिन यह कवि केदारनाथ सिंह की आखें हैं जो, “सीढ़ियों पर बैठे बन्दरों की आँखों'' की ‘‘एक अजीब-सी नमी'' को लक्षित कर ले जाती है। इसी तरह 'बैल' कविता में वह 'बैल' के बारे में लिखते हैं-“वह एक ऐसा जानवर है जो दिनभर / भूसे के बारे में सोचता है। रात भर / ईश्वर के बारे में''। 'बाघ' कविता में भी जब बाघ का सामना बुद्ध से होता है, वहां कवि लिखता है, “जहाँ एक ओर भूख ही भूख थी / दूसरी ओर करुणा ही करुणा।'' बाघ कवि के लिए ‘भख ही भख' है। कहने का आशय यह है कि पश- जगत् के साथ केदारनाथ सिंह बड़ा कोमल एवं कारुणिक बर्ताव करते हैं। दूसरी चीज यह कि ये सभी पशु उनकी कविता में अपनी प्राकृतिक सत्ता' नहीं खोते। वे बिम्ब, प्रतीक, मिथक बाद में है, उनका प्राकृतिक अस्तित्व पहले। है। 'बाघ के बारे में' केदारनाथ लिखते हैं- "बाघ हमारे लिए आज भी हवा-पानी की तरह एक प्राकृतिक सत्ता है, जिसके होने के साथ हमारे अपने होने का भवितव्य जुड़ा हुआ है।'' ‘बाघ' पढ़ते समय सबसे पहली उत्सुकता यह होती है कि 'बाघ' है क्या? बाघ की कई-एक छवियां इस कविता में हैं। कभी हिंसा बाघ के रूप में तो कभी अपने स्वभाव के विपरीत समस्त करुणा से युक्त बाघ। जिस तरह वह अस्मिताओं के सन्दर्भ में बात करते हैं उनकी कविताओं की यह विशेषता है कि वह जिस विचार के परिसर को बड़ा मानते हैं उसमे वह काल्पनिकता, मनोरंजकता, मन गढंत बातों को जगह नहीं देते हैं। बल्कि उसे और अधिक स्पष्ट करके उसका दायरा बढा देते हैं। वह विचार उनकी कविताओं का नजरिया बन जाता है। यही उन्होंने बाजार के साथ किया है। बाजार की नजर से बाजार की व्यापकता और स्वीकृति को देखते हुए वह इसे अस्मिताओं के विमर्श तक ले जाते हैं। इन आस्मितामुलक कविताओं में जीवन की तरलता और स्वतन्त्रता, पहचान, का सवाल उठाया गया है। समय की दुर्गति को पहचानते हुए केदार तमाम निर्मितियों के विखण्डन को देख रहे हैं। बेडौल और टूटे फूटे चेतना के कण बटोरकर उसे एक आख्यान में तब्दील कर रहे हैं। इसी तरह उनकी स्त्रीवादी कविताओं में पीड़ा है, करूणा है सहानुभूति है और सवाल भी हैं। यह वर्ष साहित्य के लिए बहुत घातक रहा। एक के बाद एक बड़े लेखकों के निधन ने हिन्दी प्रेमियों को चौंकाया। दूधनाथ सिंह, सुशील सिद्धार्थ के बाद केदारनाथ सिंह का जाना बेहद दुखद है। केदार का जाना हिन्दी कविता के लिए अपूरणीय क्षति है। केदार को अजातशत्रु कहा जाता है। वह इसलिए कि उन्होंने असहमतियों को कभी दिल से नहीं लिया। हर उमर के लेखकों से घुल मिल जाते थे। वे आज के दौर में जब असहमतियों को सहना कठिन हो चुका है। केदारनाथ सिंह जैसे कवियों की वजह से ही असहमति को स्पेस मिलता है। असहमतियाँ आत्मीयता में बदलती हैं। इस वर्ष जनवरी में निमोनिया के कारण उनकी तबियत गड़बड़ हो गई और लगातार बिगड़ती गई। वह इस घातक बीमारी के कारण कभी अस्पताल तो कभी घर आते जाते रहे। १९ मार्च शाम आठ बजे असहमतियों को आत्मीयता में बदलने वाला हमारे समय का यह बड़ा कवि नहीं रहा। सृजन सरोकार का परिवार शीर्ष कवि को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके ग परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। करता है।


                                                                                                                                                                                               सम्पर्क : बबेरू, जनपद बाँदा                                                                                                                                                                                                   मोबाइल : 8858172741