पत्र - एक अभियान का सूत्रपात

प्रथम अंक में अपनी बात' आश्वस्त कर गई कि ‘सृजन सरोकार' इस दौड़ में ‘साँस' की गुजारिश है।' सच्चाई यह है कि आज की अंधी दौड़ में जो सत्य है, शिव है, सुन्दर है, उसकी उपेक्षा और अनदेखी ही आज की दुनिया की समझदारी बन गई है। हम अजीब भगदड़ की स्थिति में मानवीय संवेदनाओं से हीन हो रहे हैं। मनुष्य का सवरूप खोते जा रहे हैं। वैसे समय में आपका ‘सृजन सरोकार' एक मशाल बनकर आया है। आपके कुशल सम्पादन में साहित्य, कला, संस्कृति को नवीन, प्रेरक और सुसंस्कृत बनाने का स्तुत्य प्रयास किया जा रहा है। स्वस्थ रचनात्मक, सकारात्मक पहल सृजन के लिए उर्वर मंच देगा, ऐसा विश्वास है। आपने मानवीय दृष्टिकोण को सर्वोत्तम मानते हुए उसकी लौ की खोज में अपनी सन्नद्धता दिखाई है, इसको सृजन का मूलाधार माना है, यह हम सब के लिए बड़ी प्रसन्नता की बात है। यह एक पत्रिका-प्रकाशन ही नहीं, एक अभियान का सूत्रपात है, जो निर्मल मन से शाश्वत मानवीय बोध का आधार बनेगा तथा प्रेम और सौन्दर्य को समर्पित होगा।


     प्रथम अंक का प्रथम आलेख ‘जीवनियों के बीच महात्मा' के द्वारा महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व को विभिन्न बिन्दुओं द्वारा उद्घाटित करने का प्रयास किया है, यह निश्चय ही सम्पादक के कुशल चुनाव का परिणाम है। महात्मा गाँधी आज भी अद्वितीय है और सदा रहेंगे। दूसरा आलेख मीडिया के भटकाव पर केन्द्रित है जो आज का बहुत बड़ा मुद्दा है। समय की स्वार्थी, अंधी दौड़ में मीडिया बहुत अधिक पदच्युत हो रहा है, जो बहुत हताशा पैदा करता है। इस दिशाहीन और अविवेकी प्रवाह को कौन रोक सकता है? कोई नहीं। परन्तु साहित्य, कला की सच्ची पहल, सत्यनिष्ठ जागरूकता एक आलोक पैदा कर आज के दुर्दान्त अंधेरे में राह अवश्य दिखा सकती है 


   साहित्य में त्रिलोचन और मुक्तिबोध पर सामग्री देकर आपने कविता की उच्चस्तरीय क्षमता को हमारे सामने रखा है। गजल, कविता, कहानी, विमर्श सभी आकृष्ट करते हैं। पिता के पास लोरियाँ नहीं होती' मर्म को झंकृत करती कविता है। दोनों हृदय को झकझोरती मार्मिक कहानी है ।एक तरफ अकेली बहनों की त्रासदी है, छोटी बहन का मानसिक उद्वेलन है तो दूसरी तरफ लेखक की गहरी संवेदना से भरी रचनाशीलता लेखकीय कौशल का उत्तम उदाहरण है। 'कला' में वानगो और निराला की संवेदनाओं का तुलनात्मक आकलन बहुत अच्छा लगा। दोनों ने श्रमिकों, किसानों, उपेक्षितों पर दृष्टिपात कर अपने गहन आवेग से उन्हें चित्रित किया, वह मानवीय करूणा की महान धरोहर है। हमारे लिए अनमोल निधि नगा पहाड़ियों और थारू संस्कृति से पहचान कराकर आपने देश की विभिन्न संस्कृतियों को परिचय दिया है जो सराहनीय है, एवं कई भ्रमों का निवारण भी करता है। जीवन में स्पेस और स्मृतियों के महत्त्व पर एकाग्र रचनाएँ भी प्रभावित करती हैं। साहित्य, कला, संस्कृति, स्मरण, गोष्ठी : रपट सभी विषयों के आलेख चित्ताकर्षक है, सूचनापरक, संभावनाओं से भरे श्रेष्ठ हैं।


    दूसरे अंक में प्रथम आलेख 'आज कैसा है गाँधी का चम्पारण' कई प्रश्नों का उत्तर देता है। इसके द्वारा गाँधी जी के सपनों का क्षरण देखने को मिला। चम्पारण का ऐतिहासिक महत्त्व है। आज भी उसकी स्थिति उपेक्षित है, जन जीवन मौलिक सुविधाओं से वंचित है, यह जानकर मन में आक्रोश और करूणा एक साथ उत्पन्न होती है। मुद्रा राक्षस का व्यक्तित्व इतना जीवंत हैं कि हृदय में बहुत कुछ सार्थक भर देता है। ‘उनके भीतर एक बड़ा सूरज जल रहा है' यह पंक्ति हमें दीप्त कर देती है। ‘अडिग, अविचल, ललकारते हुए, लड़ते हुएशब्द ही दोस्त के उनके शब्द ही हथियार शब्द ही रह गए। उनके पास।' पंक्तियाँ हमें प्रबुद्ध बनाती है, शब्द शस्त्र से जीने की हिम्मत देती हैं जल रंग चित्रों का इतिहास और वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालकर राम विरंजन जी ने चित्रकला पर अच्छी जानकारी दी है। अदम गोंडवी की जनपक्षधरता से जुड़ी गजलें चिनगारी हैं जो पारंपरिक गजल की शक्ल बदल देती हैं। तथा सबकी प्रिय बन जाती हैं। अदम की शायरी हमारे समय की सच्ची और तीखी आलोचना है। वेद प्रकाश की कविताएँ। ‘आदमी होना आदमी के बीच का मृदुल बोध कराती है। जीवन की विद्रूपताओं के लिए सचेत और प्रतिरोधक शक्ति  से भरी भावना कवि की विशेष पहचान है। संतोष श्रीवास्तव की कविताएँ मन को भाती है। ‘गीत चल पड़ा है' के द्वारा गीत की वास्तविक भूमिका पर भावनाएँ अंकुरित हुई हैं जो विभोर करती हैं। सरिता सैल की कविताओं ने हृदय को छुआ। प्रकृति के दायित्व बोध और श्रम साधना से लेकर मनुष्य की नियति और व्याकुलता को गहरी संवेदना से व्यंजित किया है। उपासना झा की कविताएँ भी झकझोरती हैं। अनुभूतियाँ चुभती हैं तथा चिन्तन की ओर प्रेरित करती हैं। ‘कादिर भाई' कहानी बहुत अच्छी लगी। जाति धर्म के फैलते नफरत के अंगारों में प्रेम और भाईचारे का रिश्ता इंसानियत की उष्मा का दर्शन कराता है। हुनर की परख और उसे आगे बढ़ाने के लिए, बिना किसी स्वार्थ के सहयोग करना मनुष्य का सबसे उदात्त पक्ष है। असहिष्णुता, हिंसा और विभ्रम के इस अमानुषिक दौर में प्रेम और रचनात्मकता का फूल खिलाकर आपने हमें मानवीय मूल्यों के प्रति भरोसा दिया है। सृजन के विविध रूप और प्रक्रियाओं को केन्द्रीय विषय बनाकर आपने हमें नवीन ऊर्जा दी है तथा लेखन के लिए प्रेरित किया है। पत्रिकाओं की भारी भीड़ में यथाशीघ्र ‘सृजन सरोकार' अपना विशिष्ट स्थान बना लेगा, ऐसा विश्वास है। यह सर्वांश पठनीय है, रोचक है। कहीं-कहीं वर्तनी की भूलें ध्यान भंग करती है। कुल मिलाकर ‘सृजन सरोकार' का प्रकाशन स्वागत योग्य है।


                                                                                                                                             उषा वर्मा, बिहार शरीफ, बिहार