दूधनाथ सिंह आधुनिक हिन्दी साहित्य में छठे दशक से लेकर अबतक एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं। इन्होंने एक उच्चकोटि के कहानीकार, उपन्यासकार, संस्मरणकार और कवि के रूप में हिन्दी साहित्य के भण्डार में अपनी कालजयी कृतियों से श्रीवृद्धि की है। अबतक इनके पॉच कहानी संग्रह तो बहुत चर्चित हुए है साथ ही दो उपन्यास भी लोकप्रिय है। दूधनाथ सिंह एक लोकप्रिय कथाकार के रूप में वर्तमान समय में अपनी प्रतिष्ठा बना ली है। हिन्दी साहित्यकारों के बीच इनकी एक अलग ही पहचान है जो कि मध्य वर्ग की समस्याओं के उजागर करने का कारण बनी है। इनकी लेखनी का एक बहुत बड़ा भाग समाज का मध्यवर्ग ही है। मध्यवर्ग की समस्याओं का चित्रण करना इनका यथार्थ रूप लगता है। दूधनाथ सिंह खुद एक मध्यवर्गीय परिवार से जुड़े हुए व्यक्ति थे। स्वयं के भोगे हुए यथार्थ को उन्होंने अपनी लेखनी का प्रमुख विषय बना लिया है।
दूधनाथ सिंह की कहानियों में चित्रित मध्य वर्ग की समस्याओं को भलीभॉति देखने के लिए सर्वप्रथम वर्तमान समाज को आर्थिक दृष्टि से तीन श्रेणियों में बाँट सकते है। वह वर्ग है- उच्च वर्ग, मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग। उच्चवर्ग एवं निम्न वर्ग क्रमशः समाज में शोषक एवं शोषित या पूँजीपति एवं श्रमिक वर्ग कहलाते हैं। मध्यवर्ग का उदय इन दोनों के बीच से हुआ है जो आधुनिक काल में साहित्य का विषय बना लिया गया है। आर्थिक दृष्टि से इस वर्ग को भी दो वर्गों में बाट सकते हैं- एक उच्च मध्यवर्ग एवं दूसरा निम्न मध्यवर्ग। निम्न मध्यवर्ग की प्रमुख समस्याएं हैं- रोटी, कपड़ा, आवास, शिक्षा, सुरक्षा एवं समाज में उनकी प्रतिष्ठा आदि। ध्यातव्य है कि निम्न मध्य वर्ग की प्रमुख समस्या उनके अस्तित्व की है जो वह शान्ति पूर्ण जीवन बिताने में चाहता है। इसके विपरीत उच्च मध्यवर्ग सामाजिक उन्नति चाहता है। यह वर्ग अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण समाज के उच्चवर्ग अर्थात् पूँजीपति (शोषक वर्ग) के समकक्ष पहुचने के लिए प्रयत्नशील है। वर्तमान समाज मे मध्यवर्ग के जीवन में एक विषम द्वन्द्व व्याप्त है।
भैरव प्रसाद गुप्त, नामवर सिंह और दूधनाथ सिंह
सामाजिक मान्यताओं एवं नैतिकता का ठेकेदार यह वर्ग सर्वाधिक मर्यादावादी होने के कारण अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा पर किसी प्रकार की आँच आना नहीं सह पा रहा है। अत: आज का भारतीय मध्यवर्गीय व्यक्ति असन्तुष्ट, उदण्ड, आत्मप्रदर्शनवादी एवं मुखर हो गया है। उसका जीवन विभिन्न प्रकार की समस्याओं से बुना हुआ है। शिक्षा एवं बेरोजगारी की समस्या ने उसे नितान्त स्वार्थी बना दिया है। जीवन के आधुनिक मानदण्ड प्राचीन रीति-रिवाजों के प्रति मध्यवर्ग में अनास्था एवं उसके प्रति विद्रोह उत्पन्न किया है। विभिन्न परिवर्तनों के लिए मध्यवर्ग का व्याकुल मन असन्तोष, आक्रोश, विवशता एवं घुटन में वह सॉस ले रहा है। आर्थिक रुप से पूँजीपतियों के विरुद्ध उनके | कुचक्रों से लड़ते हुए उसे तमाम प्रकार के व्यंग्य, लांछन, उपहास एवं उपेक्षाओं को सहना पड़ रहा है। इसी प्रकार की समस्या को अपनी कहानी का विषय बनाकर दूधनाथ सिंह ‘सुखान्त' कहानी के नायक को पेश करते है जो बेकारी में अपना दिन व्यतीत कर रहा है। यदि पिता की मृत्यु हो जाए तो किन-किन रीति-रिवाजों को करना पड़ेगा? कितना पैसा खर्च होगा? वह पैसा कहां से और कैसे आएगा? यह चिन्ता अधिक भयावह है, जैसे- “अगर पिताजी मर गए। वह दीवार की चमकती धुंध में अपनी ऑखे गड़ा लेता .. ............ अगर मर गए? कैसे वह हरे-हरे बॉस कटवाकर टिकठी बनवाएगा? कितनी जल्दी करनी पड़ेगी? कौन-कौन लोग कंधा देंगे? उसे लग्गी लेनी पडेगी? बारह दिन तक लगातार जमीन पर सोना पड़ेगा और खोपरे में खाना पड़ेगा? मां की दफा वहीं से मंगाया था।.... ......... तब से घर में कोई मौत कहां हुई? तेरही पर बहुत बड़ा भोज करना पड़ेगा। तीन-सौ लोग होंगे कुल। कच्ची-पक्की दोनों। कच्ची में फरहरे चावल, कढी, फलौडी, बडे, दही। पक्की में शुद्ध घी की पूडियॉ, दही, चीनी ............................ दो-दो तरकारियाँ ........। दान के लिए गद्दा, तकिया, चादर, थाली, लोटा, गिलास..................... बहुत तंग करते है। सब। रुपये? रुपये कहाँ से .................''। स्वातंत्र्योत्तर मध्यवर्गीय व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति से पूरी तरह परेशान है परन्तु सामाजिक रीतिरिवाजों एवं परम्पराओं में बुरी तरह से जकड़ा हुआ है। ‘प्रतिशोध' कहानी का नायक भी मध्यवर्गीय परिवार का एक जीता-जागता व्यक्ति है जो कलकत्ता जैसे महानगर की भीड़ में अपनी जीवन की समस्याओं से इतना जकड़ा हुआ है कि उसे सारा संसार ही समस्याओं से त्रस्त दिखता है। जैसे- “हजारों स्त्री-पुरुष काली घाट से लेकर शाम बाजार तक। बड़तल्ला में, मछुआ बाजार, इलियट स्ट्रीट, टालीगंज ............ भवानीपुर की सर्द गलियों में हर जगह। उन्हें देखकर डर लगता है। ये लोग नहीं हैं- केवल एक सफेद मौन चीत्कार है..... गूंजती हुई। यह चीत्कार पूरे देश में फैली हुई है ........ वह बीच में ही अपनी विचारधारा का तोड़ देता है। वह डरता है। उसकी टांगें बेवजह कांपती है। वह बेमतलब कई बार असफल लौट आने के बाद नियत तारीख पर घर से निकलकर सड़क पर आते ही उसे इसी तरह के ख्याल जकड़ लेते और वह काफी रास्ता पैदल तय कर लेता।''
इस कहानी का नायक महानगर में चला तो आता हैपरन्तु वह बेकारी में अपना दिन किसी न किसी तरह से बिताता है। जिस ऑफिस में वह काम करता था, वहां से अपनी ही मजदूरी लेने में काफी समस्या झेलनी पड़ती है। वह ऑफिस के कई चक्कर लगाता था फिर भी पैसा नहीं मिलता था। इसी कारण सड़क पर निकलते ही हर तरफ उसे वही विवशता दिखाई देती थी जिससे वह यथार्थ में भोग रहा है। मध्यवर्गीय परिवार की मनोस्थिति उसकी अनुभूतियों एवं विवशताओं तथा आन्तरिक घुटन एवं अन्तर्द्वन्द्व की यथार्थ समस्या दूधनाथ सिंह द्वारा लिखित कहानी ‘आखिरी छलांग' में देखने को मिलती है। किसी गांव से महानगर में नायक आ तो जाता है परन्तु वह नायक अपने पूरे जीवन भर असफल रहता है और अन्त में ऊपर से छलांग लगाकर आत्महत्या कर लेता है। जैसे- “यह तबतक चलेगा जब तक तुम आसमान की ऊँचाई पे नहीं पहुँच जाते, तुम्हारे सारे गुरु अलग-अलग मंजिलों पर मरे हुए सुअरों की तरह पड़े होगें। सारा संसार मुंह बाये ऊपर तुम्हें ताकता रहेगा और तुम्हारा ब्रह्मास्त्र- तुम्हारी फरुही उस वक्त तुम्हारे हाथों में होगी। लेकिन गोबर 2..................... वहां नहीं होगा। वही क्षण तुम्हारी असहायता, असफलता का चरम क्षण होगा।''
‘दुःस्वप्न' कहानी में भी नायक मध्यवर्गीय मजबूरियों से त्रस्त है। उसकी पारिवारिक मजबूरियां समाज सापेक्ष है। वह बेकार है, उसके पास करने के लिए कोई काम नहीं है। घर में दो वर्षीय बच्चा बीमार पड़ा है। इसकी दवा के लिए उसको पैसा चाहिए, जिससे मजबूर होकर वह सड़क पर खड़ा है और हर आने-जाने वाले को कुछ सामान कम पैसे में दिलवाने का उन्हें आश्वासन देता है लेकिन कोई भी व्यक्ति उसका विश्वास नहीं करता है। इस समस्या में वह नितांत अकेला व्यक्ति है जिससे त्रस्त होकर उसका समाज से और अपने आप से भी विश्वास उठ गया है। जैसे **लेकिन उसने तभी मुझे चौंका दिया .......... उसने पैसे लेने से इनकार कर दिया, पास ही के एक दवा खाने तक चलने को कहने लगा। मैंने कहा वह पैसे लेले और चला जाए। तभी उसके हठ करने से मुझे लगा कि वह विश्वास दिलाना चाहता है। मैं चुप उसके साथ हो लिया। वहां उसने कुछ दवाएं लीं और बिल चुका देने के लिए मुझे काउण्टर पर खड़ा कर दिया, मैने परचे पर सरसरी नजर डाली ...................... खोला, उम्र २ साल, मेनिंजाइटिस। मैने पैसे दे दिए और बुझा हुआ खड़ा रहा।''
दूधनाथ सिंह द्वारा रचित कहानी ‘आइसबर्ग' में भी मध्यवर्गीय समस्या को प्रमुख विषय बनाया गया है। यह कहानी भी एक मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है। इसमें नायक विनय की पत्नी विनय को छोड़कर चली जाती है। विनय की निरीहता, आत्मविश्वास की कमजोरी, सहनशीलता का अतिरेक एवं उसका अकेलापन उसके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं जो कि प्राय: सभी भारतीय मध्यवर्ग के जीवन की आम बातें है- ‘‘बेबी मैं चाहता हूँ कि मुझे भी लगे कि मैं आदमियों के बीच हूँ। मेरे भी चारो तरफ लोग है। जो मुझे पहचानते हैं, मैं भी किन्हीं से परिचित हूँ। मै तुम सबके बीच में अपने को महसूस करना चाहता हूँ। बेबी, मुझे बार-बार लगता है कि जीवन मेरी मुट्टियों से पानी की तरह फिसल गया है।''
भयावह अकेलेपन में जीवन जीता हुआ वह अपने सभी भाई-बहनों को आमंत्रित करता है, परन्तु उसके बीच भी अपने आप को अकेला ही महसूस करता है और मध्यवर्गी सामाजिक रुढ़ियों में जकड़ा रहता है। इसी प्रकार ‘स्वर्गवासी' कहानी का नायक भी मध्यवर्गीय समस्याओं से त्रस्त है, उसके दफ्तर में छंटनी होती है, जिसके कारण उसे भी दफ्तर से निकाल दिया जाता है, उसके पिता जी उसको जीजा जी के पास जाने को कहते है ताकि उनकी सिफारिश से उसे पुनः दफ्तर में लेखपाल के रूप में रख लिया जाए। वह आ तो जाता है, लेकिन अन्दर ही अन्दर अपने आप से लड़ता है, सामाजिक समस्याओं से लड़ता है, इस लाचार हालत में अपनी बात जीजा जी से कह भी नहीं पाता। उसे समझ में ही नहीं आता कि वह अपनी समस्याओं को किस प्रकार जीजा जी के सामने व्यक्त करे, भोजन न करके, शरीर अंग-भंग करके या आत्महत्या करके। इसका उदाहरण है ‘स्वर्गवासी' कहानी से जैसे‘अब मैं क्या करूं? मैं ही अकेले थोडे उन छंटनी वालों में था और अगर मुझे कुछ नही होता .......... मैं बीमार नहीं पड़ता तो इसमे मेरा क्या दोष और कैसे कुछ नहीं होता। ये लोग यहां से वहां से वहां तक-क्या मुझे कम परेशान किए हुए हैं। अब परेशानी का दिखावा कैसे किया जाए। क्या मैं मर जाऊं, या अपना अंग-भंग कर लें, या भोजन न करूं?..................... उसे पिता की याद आती- चलते वक्त उन्होंने हिदायत दी थी, जाकर सीधे जीजा जी से कहना। बहाने मत बनाना। कहना, वे खुद तुम्हें लेकर लखनऊ चले जाएं और काम करा लाएं। तुम वहां टाल-मटोल मत करना और काम के बाद तुरन्त घर चलेआना। रुकना मत।''
दूधनाथ सिंह द्वारा लिखित कहानी ‘स्वर्गवासी' वास्तव में मध्यवर्ग का यथार्थ चित्रण है। जो कि एक कड़वी सच्चाई लिए हुए है। इसी प्रकार विजेता' कहानी का नायक भी मध्यवर्गीय समस्याओं रोटी, कपड़ा और मकान से जूझता हुआ दिखाई देता है जो कुछ समय । बाद खुद ही अपनी पहचान खाता हुआ दिखाई देता है, जैसे- “अब मेरी समझ में आया- मैं जो अपने को इतना व्यक्तित्व सम्पन्न और सुकुमार समझ रहा हूं, वह मेरे चेहरे या पहनावे से बिल्कुल नहीं झलकता। मैं कभी बहुत सुन्दर और कोमल था, यह सोचते हुए अब शर्म आती है। इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा। मैं टूटने और खत्म होने की हद पर आ गया हूं-शायद।''
मध्यवर्गीय जीवन की आर्थिक, सामाजिक विवशताओं, उसकी चीख एवं चिल्लाहट, उसके खोखले अंधविश्वासों, झूठे-रीति-रिवाजों एवं उनकी मान्यताओं से मुक्ति का यथार्थ चित्रण दूधनाथ सिंह ने अपने कथा साहित्य में किया है।
उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा के शब्दों में ‘जिसे मध्यवर्ग कहते हैं, उसमें यह जीवित रहने का संघर्ष भयानक है। इस मध्यवर्ग के पास विशिष्टता का ढोंग है, सम्पन्नता का दिखावा है। इसके पास सामाजिकता है, नैतिकता है। अपने द्वारा बनाए गए सामाजिक और नैतिक मान्यताओं को वह अपने सिर पर लादे हुए है। इस मध्यवर्ग के पैर लड़खड़ा रहे हैं लेकिन अपने सिर से बोझ उतार फेकने का उसका साहस नहीं है।''
उपर्युक्त उदाहरणों को देखकर लगता है कि जब तक यह मध्यवर्ग अपनी विवशताओं को नहीं पहचानेगा तथा जबतक आदर्शवादिता और रुढिवादी संस्कारों को छोड़कर सामूहिक रूप से धनोपार्जन में नहीं लग जाता तब तक उसकी समस्याओं का समाधान नहीं होगा। मध्यवर्ग एक ऐसा वर्ग है जो दो पदों के बीच में पिस रहा है। वह अपने आगे निम्न वर्ग को नहीं आने देना चाह रहा है और उच्चवर्ग की बराबरी में अपनी सम्पूर्ण जिन्दगी बर्बाद कर रहा है। इस चक्कर में वह दिन-रात एक नई समस्या में फंसता जा रहा है। मध्यवर्ग की समाजिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि समस्याओं का यथार्थ चित्रण दूधनाथ सिंह ने अपनी कहानियों में किया है। जो चित्रण इन्होंने अपने कथा साहित्य में किया है, वह आज यथार्थ लगता है। दूधनाथ सिंह प्रगतिशील विचारधारा के लेखक हैं, उनका लेखन उनके समकालीन लेखकों से नितांत भिन्न व विशिष्ट है। वह अपने कथा-साहित्य के प्रत्येक कहानी, उपन्यास आदि के विषय शिल्प व स्वरूप में पूर्णतः मौलिक है। यह बात स्वीकार करते हुए वे स्वयं ही कहते है कि - "जैसे अकहानी का दौर आया। बड़ी चर्चा हुई, रवीन्द्र कलिया और गंगा प्रसाद विमल की। लेकिन मुझमें यह ठेठ जिद थी कि मैं तो वैसा ही लिखेंगा जिस तरह का माहौल मैंने जाना है। दूसरे किसी भी थीम को, किसी भी विचार को अन्त तक निचोड़ने की मेरी आदत है। आप मेरी कहानियों को पढे तो देखेंगे कि मैं थककर किसी भी थीम या विचार को छोड़ता नहीं हूं बीच में। या सरे राह एक कहानी नहीं छोड़ दिया करता। यदि मैं कोई थीम उठाता हूँ तो उसे अन्त तक निचोड़ कर रख देता हूँ।'' दूधनाथ सिंह अपने कहनी और करनी में विश्वास करने वाले लेखक हैं। समाजिक व्यक्ति के रूप में एक मध्यवर्ग व्यक्ति की क्या-क्या समस्या आधुनिक युग में है, इसका यथार्थ चित्रण उन्होंने अपनी कहानियों में किया है। ।